________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
राजयक्ष्मा और उरःक्षतकी
चिकित्सा।
NADANER
यक्ष्माके निदान-कारण । आयुर्वेद-ग्रन्थों में लिखा है:--
वेगरोधातक्षयाच्चैव साहसाद्विषमाशनात् ।
त्रिदोषो जायते यक्ष्मागदो हेतुचतुष्टयात् ॥ मल-मूत्रादि वेगोंक रोकने, अधिक व्रत-उपवास करने, अति मैथुन आदि धातु-क्षयकारी कर्म करने, बलवान् मनुष्यसे कुश्ती लड़ने अथवा बिना समय खाने-कभी कम और कभी ज़ियादा खाने आदि कारणोंमे "क्षय" "यक्ष्मा" रोग होता है। यह क्षय रोग त्रिदोष या सान्निपातिक है. क्योंकि तीनों दोषोंसे होता है। उपरोक्त चार कारणोंके सिवा इसके होनेके और भी बहुत कारण हैं; पर वे सब इन चार कारणोंके अन्तर्भूत हैं।
खुलासा यह है, कि यक्ष्मा रोग नीचे लिखे हुए चार कारणोंसे होता है:
(१) मल-मूत्रादि वेग रोकनेसे । (२) अति मैथुन द्वारा धातुक्षय करनेसे । (३) अपनी ताक़तसे जियादा साहस करनेसे । (४) कम-ज़ियादा और समय-बेसमय खानेसे ।
चारों कारणोंका खुलासा। नोट-(१) ऊपर जो वेग रोकनेकी बात लिखी है, क्या उससे मल, मूत्र, छींक. डकार, जंभाई, अधोवायु, वीर्य, आँसू, वमन, भूख, प्यास, श्वास और
For Private and Personal Use Only