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इन्द्रलुप्त या गंजकी चिकित्सा । होनेसे, हर महीने शुद्ध होता रहता है। इसी वजहसे उनके रोमकूप या बालोंके छेद नहीं रुकते । ___“तिब्बे अकबरी"में बालोंके उड़नेके सम्बन्धमें बहुत-कुछ लिखा है। उसमेंसे दो-चार कामकी बातें हम यहाँ पर लिखते हैं। गंज रोगमें सिरके बाल उड़ जाते हैं और कनपटियोंके रह जाते हैं। अगर यह हालत बुढ़ापेमें हो, तब तो इसका इलाज ही नहीं है। अगर जवानीमें हो, तो दवा करनेसे आराम हो सकता है। अगर सिरपर ज़ियादा बोझा उठानेसे बाल उड़ते हों, तो बोझा उठाना बन्द करना जरूरी है। शेख बूअली सेनाने अपनी किताब 'शिफा' में लिखा है, स्त्रियोंके सिरके बाल नहीं उड़ते, क्योंकि उनमें तरी ज़ियादा होती है
और नपुसकोंके भी नहीं उड़ते, क्योंकि उनकी प्रकृतिमें कुछ नपुंसकता होती है।
चिकित्सा। (१) रोगीको स्निग्ध और खिन्न करके मस्तककी फस्द खोलो यानी स्नेहन और स्वेदन क्रिया करके, सिरकी या सरेरूकी फस्द खोलो और मैनसिल, कसीस, नीलाथोथा और कालीमिर्च-इनको बराबर-बराबर लेकर, पानीके साथ पीसकर, गंजकी जगह लेप करो।
नोट-यह नुसखा सुश्रुतके चिकित्सा-स्थानका है । वैद्यविनोद आदि ग्रन्थों में भी लिखा है।
(२) कुटकीको कड़वे परवलके पत्तोंके रसके साथ पीसकर, तीन दिन तक, लगानेसे पुराना गंज रोग भी आराम हो जाता है।
(३) कटेरीका रस शहदमें मिलाकर गञ्जपर लगानेसे गञ्ज रोग नाश हो जाता है।
(४) हाथी दाँतकी राख में, बकरीका दूध और रसौत मिला
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