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चिकित्सा-चन्द्रोदय । कर, गञ्जपर लेप करनेसे मनुष्यके पैरोंके तलवोंमें भी बाल आ जाते हैं।
नोट--यह नुसखा "वैद्यविनोद"का है। इस नुसख को ज़रा-ज़रा-सा उलट फेर करके अनेक वैद्योंने लिखा है और बड़ी तारीफें की हैं। चिकित्साअनमें लिखा है:--
हस्तिदन्तमसीताानिन्द्रलुप्ते प्रलेपयेत् ।
ज्येन पयसा सार्धसर्वथा तद्विनश्यति ॥ हाथीदाँतकी भस्म और रसौत दोनोंको बराबर-बराबर लेकर, घी और दूधमें मिला लो। जिसके सिरके बाल गिरे जाते हों, उसके सिरमें इसका लेप करो । इस उपायके करनेसे गञ्ज रोग नाश हो जायगा
और सिरके बाल फिर कभी न गिरेंगे। "भावमिश्रजी"ने भी इस नुसखेकी तारीफ की है।
(५) चमेलीके पत्ते, कनेर, चीता और करञ्ज--इनको समानसमान लेकर, पानीके साथ पीस लो। फिर लुगदीके वजनसे चौगुना मीठा तेल लो और तेलसे चौगुना जल या बकरीका दूध लो। सबको मिलाकर, पका लो। तेल-मात्र रहनेपर उतार लो। इस तेलको सिरपर मलनेसे गञ्ज-रोग नाश हो जाता है। __ नोट--यह नुसखा हम "वैद्यविनोद"से लिख रहे हैं। वास्तवमें यह नुसखा "सुश्रुत" चिकित्सा-स्थानका है । वैद्यविनोदमें होनेसे, हमें विश्वास है, यह नुसखा और ऊपरका नं. ४ का नुसखा ज़रूर उत्तम होंगे। "भावप्रकाश में भी यह मौजूद है । “वरना" और ज़ियादा लिखा है।
(६) "भावप्रकाश में लिखा है, कड़वे परवलोंके पत्तोंका स्वरस निकालकर, गञ्जपर मलनेसे, तीन दिन में बहुत पुरानी गञ्ज भी आराम हो जाती है।
नोट--इस नुसख और नं. २ नुसख में 'कुटकी'का ही फर्क है। "भावप्रकाश"में-तिक्कपटोल पत्र स्वरसैपृष्टवा शमं याति है और वैद्यविनोदमें-- . तिक्कापटोलपत्र स्वरसै है । तिक्क कड़वेको और तिका कुटकीको कहते हैं।
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