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झाँई और नीलिका वगैरकी चिकित्सा ।
चिकित्सा । - (१) अर्जुन-वृक्षकी छाल और सफ़ेद घोड़ेके खुरकी मषी-इन दोनोंका लेप झाँई को नाश करता है।
(२) आकके दूधमें हल्दी पीसकर लगानेसे नयी क्या-पुरानी झाँई भी चली जाती है। परीक्षित है।
(३) तेलकी, २१ दिन तक प्रतिमर्षण नस्य देनेसे, गालोंपर उठी हुई फुन्सियाँ इस तरह नष्ट हो जाती हैं, जिस तरह धर्मसेवनसे पाप।
(४) केशर, चन्दन, तमालपत्र, खस, कमल, नीलकमल, गोरोचन, हल्दी, दारुहल्दी, मँजीठ, मुलहटी, सारिवा, लोध, पतंग, कूट, गेरू, नागकेशर, स्वर्णक्षीरी, प्रियंगू, अगर और लालचन्दन-इन २१ चीजोंको एक-एक तोले लेकर, पानीके साथ, सिलपर महीन पीसकर लुगदी या कल्क बना लो। फिर काली तिलीके एक सेर तेलमें ऊपरकी लुगदी और चार सेर पानी मिलाकर मन्दाग्निसे पकाओ ।जब पानी जलकर तेल-मात्र रह जाय (पर तेल न जले) उतारकर छान लो और बोतलमें भरकर रख दो । ___ इस तेलको राज-रानियों या धनी मनुष्योंको मुखपर लगाना चाहिये। मुहासे, व्यङ्ग, नीलिका, झाँई, दुश्छवि-सूरत बिगड़ना
और विवर्णता-मुँहका रङ्ग बिगड़ जाना आदि चेहरेके रोग नष्ट होकर, चेहरा अतीव मनोहर और मुख-कमल केशरके समान कान्तिमान हो जाता है । जिन लोगोंके चेहरे खराब हो रहे हों, वे इस तेलको बनाकर अवश्य लगावें। इस तेलसे उनका चेहरा सचमुच ही मनोहर हो जायगा । परीक्षित है। ___ (५) चेहरेपर खरगोशका खून लगानेसे व्यङ्ग और झाँई नाश हो जाती हैं।
(६) मँजीठको शहदमें मिलाकर लेप करनेसे झाँई अवश्य नाश हो जाती है । परीक्षित है।
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