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चिकित्सा-चन्द्रोदय । KATARIMARRIERRIA * क्षुद्र रोग-चिकित्सा।
माँई और नीलिका वगैरकी चिकित्सा । HKKK लोग ज़ियादा शोच-फिक्र-चिन्ता या क्रोध करते हैं, अपने
जो बलसे अधिक परिश्रम या मिहनत करते हैं, हर समय HERE किसी-न-किसी चिन्ता-जनक खयालमें ग़लता-पेचाँ रहते हैं, उनके चेहरोंपर कम उम्र में ही काले, लाल या सफेद दाग़ अथवा चकत्ते-से हो जाते हैं। उनके सुन्दर और दर्शनीय चेहरे असुन्दर और अदर्शनीय हो जाते हैं।
आयुर्वेद-ग्रन्थों में लिखा है--क्रोध और परिश्रमसे कुपित हुआ वायु, पित्तसे मिलकर, मुखपर आकर, वेदना-रहित सूक्ष्म और कालासा चकत्ता मुँहपर कर देता है। उसे ही व्यंग और झाँई कहते हैं । किसीने लिखा है, वात और पित्त सुर्ख रंगके दाग़ कर देते हैं, उन्हें ही झाँई कहते हैं । किसीने लिखा है, शरीरपर बड़ा या छोटा, काला या सफ़ेद, वेदना-रहित जो मण्डलाकार दाग़ हो जाता है, उसे "न्यच्छ" कहते हैं । सुर्ख दाराको व्यंग या झाँई और नीलेको नीलिका या नीली झाँई कहते हैं। __ हिकमतमें लिखा है,--तिल्ली, जिगर या पेटके फसादसे, धूप और गरम हवामें फिरनेसे तथा शोच-फिक्र और ग़म करने एवं अत्यन्त स्त्री-प्रसंग करनेसे आदमीका चेहरा स्याह, मैला, बदरूप और दाग़धब्बेवाला हो जाता है; अतः धूप, गरम ह्वा, चिन्ता और स्त्री-प्रसंगको त्यागकर तिल्ली और जिगर प्रभृतिकी दवा करनी चाहिये और मुँहपर कोई अच्छा उबटन मलना चाहिये ।
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