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चिकित्सा-चन्द्रोदय ।
मूढगर्भ-चिकित्सा।
मूढगर्भ निकालनेकी तरकीबें । "सुश्रुत"में लिखा है, मूढगर्भका शल्य निकलनेका काम जैसा कठिन है वैसा और नहीं है, क्योंकि इसमें योनि, यकृत, प्लीहा, आँतोंके विवर और गर्भाशय इन स्थानोंको टोह-टोह या जाँच-जाँचकर वैद्यको अपना काम करना पड़ता है । भीतर-ही-भीतर गर्भको उकसाना, नीचे सरकाना, एक स्थानसे दूसरे स्थानपर करना, उखाड़ना, छेदना, काटना, दबाना और सीधा करना-ये सब काम एक हाथसे ही करने पड़ते हैं। इस कामको करते-करते गर्भगत बालक और गर्भिणीकी मृत्यु हो जाना सम्भव है । अतः मूढगर्भको निकालनेसे पहले वैद्यको देशके राजा अथवा स्त्रीके पतिसे पूछ और सुनकर इस काममें हाथ लगाना चाहिये। इसमें बड़ी बुद्धिमानी और चतुराईकी ज़रूरत है। ज़रा भी चूकनेसे बालक या माता अथवा दोनों मर सकते हैं। इसीसे "बंगसेन" में लिखा है:--
गर्भस्य गतयश्चित्रा जायन्तेऽनिलकोपतः ।।
तत्राऽनल्पमतिवैद्यो वर्तेत मतिपूर्वकम् ॥ वायुके कोपसे गर्भको अनेक प्रकारकी गति होती हैं। इस मौकेपर वैद्यको खूब चतुराईसे काम करना चाहिये ।।
याभिः संकटकालेऽपि बह व्यो नार्यः प्रसाविताः।
सम्यग्लब्धं यशस्तास्तु नार्यः कुयु रिमां क्रियाम् ।। जिसने ऐसे संकट-कालमें भी अनेक स्त्रियोंको जनाया हो और इस काममें जिसका यश फैल रहा हो, ऐसी दाईको यह काम करना चाहिये।
(१) अगर गर्भ जीता हो. तो दाईको अपने हाथमें घी लगाकर, योनिके भीतर हाथ डालकर, यत्नसे गर्भको बाहर निकाल लेना चाहिये।
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