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स्त्रीरोगोंकी चिकित्सा-मूढगर्म-चिकित्सा । ४६७ पहले तक मैथुन करते हैं। मैथुनके समय किसी बातका ध्यान तो रहता नहीं, इससे बालकको चोट लग जाती और वह मर जाता है। इसी तरह और किसी वजहसे चोट लगने या किसी इष्ट-मित्र या प्यारे नातेदारके मर जाने अथवा धन या सर्वस्व नाश हो जानेसे गर्भवतीके दिलपर चोट लगती है और इसके असरसे पेटका बच्चा मर जाता है। इसी तरह शरीरमें रोग होनेसे भी बच्चा पेटमें ही मर जाता है । पेटमें बच्चे के मर जानेसे, उसका बाहर निकलना कठिन हो जाता है और स्त्रीकी जानपर आ जाती है। ___ और ग्रन्थों में लिखा है- अगर गर्भवती स्त्री वातकारक अन्नपान सेवन करती है एवं मैथुन और जागरण करती है, तो उसके योनिमार्गमें रहनेवाली वायु कुपित होकर, ऊपरको चढ़ती और योनि-द्वारको बन्द कर देती है। फिर भीतर रहनेवाली वायु गर्भगत बालकको पीड़ित करके गर्भाशयके द्वारको रोक देती है, इससे पेटका बच्चा अपने मुंहका साँस रुक जानेसे तत्काल मर जाता है और हृदयके ऊपरसे चलता हुआ साँस-गर्भिणीको मार देता है । इसी रोगको “योनि-संवरण" रोग कहते हैं।
नोट-बादी पदार्थ खाने-पीने, रातमें जागने और गर्भावस्थामें मैथुन करनेसे योनि-मार्ग और गर्भाशयका वायु कुपित होकर 'योनि-संवरण' रोग करता है। इसका नतीजा यह होता है कि, पेटका बच्चा और माँ दोनों प्राणोंसे हाथ धो बैठते हैं, अतः गर्भवती स्त्रियोंको इन कारणोंसे बचना चाहिये ।
गर्भिणीके और असाध्य लक्षण । जिस गर्भिणीको योनि-संवरण रोग हो जाता है-जिसकी योनि सुकड़ जाती है, गर्भ योनि-द्वारपर अटक जाता है, कोखमें वायु भर जाता है, खाँसी-श्वास उपद्रव पैदा हो जाते हैं-अथवा मकल शूल उठ खड़ा होता है, वह गर्भिणी मर जाती है । ____ नोट-यद्यपि प्रसूता स्त्रियोंको मक्कलशूल होता है, गर्भिणी स्त्रियोंको नहीं, तो भी सुश्रु तके मतसे जिसके बच्चा न हुआ हो, उसको भी मक्कल-शूल होता है ।
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