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स्त्री-रोगोंकी चिकित्सा-मूढगर्भ-चिकित्सा। ४६ (२) अगर मूढगर्भ मर गया हो, तो शस्त्रविधि या अस्त्रचिकित्साको जाननेवाली, हल्के हाथवाली, निर्भय दाई गर्भिणीकी योनिमें शस्त्र डाले।
(३) अगर गर्भमें जान हो, तो उसे किसी हालतमें भी शस्त्रसे न काटना चाहिये । अगर जीवित गर्भ काटा जाता है, तो वह आप तो मरता ही है, साथ ही माँको भी मारता है । 'सुश्रुत में लिखा है:--
सचेतनं च शस्त्रेण न कथंचन दारयेत् ।
दीर्यमाणोहि जननीमात्मानं चैव घातयेत् ॥ अगर जीता हुआ बालक गर्भमें रुका हुआ हो, तो उसे किसी दशा में भी न काटना चाहिये । क्योंकि उसके काटनेसे गर्भवती और बालक दोनों मर जाते हैं।
(४) अगर गर्भ मर गया हो, तो उसे तत्काल बिना विलम्ब शस्त्रसे काट डालना चाहिये । क्योंकि न काटने या देरसे काटनेसे मरा हुआ गर्भ माताको तत्काल मार देता है। "तिब्बे अकबरी"में भी लिखा है,-अगर बालक पेटमें मर जाय अथवा बालक तो निकल आवे, पर झिल्ली या जेर रह जाय, तो सुस्ती करना अच्छा नहीं। इन दोनोंके जल्दी न निकालनेसे मृत्युका भय है।
(५) गर्भगत बालक जीता हो, तो उसे जीता ही निकालना चाहिये । अगर न निकल सके तो "सुश्रुत" में लिखे हुए “गर्भमोक्ष मन्त्र”से पानी मतरकर, बच्चा जननेवालीको पिलाना चाहिये। इस मन्त्रसे मतरा हुआ पानी इस मौकेपर अच्छा काम करता है, रुका हुआ गर्भ निकल आता है। वह मन्त्र यह है:--
मुक्ताः पोशविपाशाश्चमुक्ताः सूर्यण रश्मयः ।
मुक्तः सर्व भयाद्गर्भ एह्यहि माचिरं स्वाहा ॥ इस मन्त्रको “च्यवन मन्त्र" कहते हैं। इस मन्त्रसे अभिमन्त्रित किये हुए जलके पीनेसे स्त्री सुखसे जनती है।
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