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स्त्री-रोगोंकी चिकित्सा-प्रसव-विलम्ब-चिकित्सा। ४८१ __नोट-मरी गायका सूखा मस्तक, जिसमें केवल हड्डी ही रह गई हो, लेना चाहिये।
(३६) कड़वी तूम्बी, साँपकी कैंचली, कड़वी तोरई और सरसों-इनको कड़वे तेलमें मिलाकर, इनकी धूनी योनिमें देनेसे अपरा अर्थात् जेर गिर जाती है।
(३७) प्रसूताकी कमरमें भोजपत्र और गूगलकी धूनी देनेसे जेर गिर जाती और पीड़ा तत्काल नष्ट हो जाती है ।
(३८) बालोंको उँगलीमें बाँधकर कण्ठ या मैं हमें घिसनेसे जेर आदि गिर जाती है।
(३६) कलिहारीकी जड़ पीसकर हाथ या पाँवोंपर लेप करनेसे जेर आदि गिर जाती है।
(४०) कूट, शालि धानकी जड़ और गोमूत्र,-इनको एकत्र मिलाकर पीनेसे निश्चय ही जेर आदि गिर जाते हैं ।
(४१) सरिवन, नागदौन और चीतेकी जड़ - इनको बराबरबराबर लेकर पीस लो । इसमें से ३ माशे चूर्ण गर्भिणीको खिलानेसे शीघ्र ही बच्चा होता और प्रसवमें पीड़ा नहीं होती।
नोट--नागदौन-नागदमन और बरियारा हिन्दी नाम हैं। संस्कृतमें नागदमनी, बँगलामें नागदना, मरहठीमें नागदाण और गुजरातीमें झोपटो कहते हैं।
(४२) मैनफलकी धूनी योनिके चारों ओर देनेसे सुखसे बच्चा हो जाता है।
( ४३ ) कलिहारीकी जड़ डोरेमें बाँधकर हाथमें बाँधनेसे सुखसे बच्चा हो जाता है।
(४४) हुलहुलकी जड़ डोरेमें बाँधकर हाथ या सिरमें बाँधनेसे शीघ्र ही बालक हो जाता है । परीक्षित है ।
नोट--सूरजमुखीकी जड़को ही हुलहुल कहते हैं। अगरेज़ीमें उसे सनफ्लावर (Sun flower) कहते हैं।
(४५) पोईकी जड़को सिलपर जलके साथ पीसकर, उसमें
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