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चिकित्सा-चन्द्रोदय । नोट-चिरचिरेको चिरचिरा, लटजीरा और ओंगा कहते हैं । संस्कृतमें अपामार्ग, बँगलामें अपांग, मरहटीमें अवाड़ी और गुजरातो अधेड़ो कहते हैं। इसके दो भेद हैं-(१) सनद, और (२) लाल । यह जंगल में अपने-आप पैदा हो जाता है । बड़े कामकी चीज़ है । __ (२६) पाढ़की जड़को पीसकर योनि पर लेप करने या योनिमें रखनेसे बच्चा सुखसे हो जाता है। ___ नोट-पाढ़ और पाठ, हिन्दी नाम हैं। संस्कृतमें पाठा, बँगलामें आकनादि और मरहटीमें पहाड़मूल कहते हैं ।
(३०) अड़ सेकी जड़को पीसकर योनिपर लेप करने या योनिमें रखनेसे बालक सुखसे होता है ।
नोट-हिन्दीमें अड़ सा, वासा और बिसोंटा; बँगलामें बासक, मरहटीमें अड़ सा और गुजरातोमें अरड़ सो कहते हैं । दवाके काममें अडू सेके पत्ते और 'फूल आते हैं । मात्रा ४ माशेकी है। ___ (३१) शालिपर्णीकी जड़को चाँवलोंके पानीमें पीसकर नाभि, पेड़ और भग पर लेप करनेसे स्त्री बच्चा सुखसे जनती है ।
नोट-हिन्दीमें सरिवन, संस्कृतमें शालिपर्णी, बंगलामें शालपानि, मरहटीमें सालवण और गुजरातीमें समेरवो कहते हैं।
(३२ ) पाढ़के पत्तोंको स्त्री के दूधमें पीसकर पीनेसे मूढगर्भकी व्यथासे स्त्री शीघ्र ही निवृत्त हो जाती है। यानी अड़ा हुआ बच्चा निकल आता है।
नोट-पाढ़के लिये पिछला नं० २६ का नोट देखिये ।
(३३) उत्तर दिशामें पैदा हुई ईखकी जड़ उखाड़कर, स्त्रीके बराबर डोरेमें बाँधकर, कमरमें बाँध देनेसे सुखसे बच्चा होता है ।
(३४) उत्तर दिशामें उत्पन्न हुए ताड़के वृक्षकी जड़को कमरमें बाँधनेसे बच्चा सुखसे पैदा होता है। बच्चा जननेवालीको पीड़ा नहीं होती।
(३५) गायके मस्तककी हड्डीको जच्चाके घरकी छतपर रखनेसे स्त्री तत्काल सुख-पूर्वक बच्चा जनती है।
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