SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 505
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४७४ चिकित्सा-चन्द्रोदय । है, पर झिल्लीके बहुत मोटी होनेकी वजहसे वह निकल नहीं सकता। ऐसे मौके पर बच्चा मर जाता है । बच्चे के मर जानेसे जच्चा या प्रसूताकी जान भी खतरेमें हो जाती है। इस समय चतुर दाई या डाक्टरकी ज़रूरत है। चतुर दाईको बायें हाथसे झिल्लीको खींचना और तेज़ छुरेसे उसे इस तरह काटना चाहिये, कि जच्चा और बच्चा दोनोंको कष्ट न हो। झिल्लीके सिवा और जगह छुरा या हाथ पड़ जानेसे जच्चा और बच्चा दोनों मर सकते हैं। चौथे कारणका इलाज । (४) अगर मिज़ाजकी गरमी और हवाकी गरमीसे बालकके होने में कठिनाई हो, तो उसका उचित उपाय करना चाहिये । यह बात गरमीके होने और दूसरे कारणोंके न होनेसे सहजमें मालूम हो सकती है । हकीमोंने नीचे लिखे उपाय बताये हैं: (क ) बनफशाका तेल, लाल चन्दन और गुलाब,-इनको जच्चाके पेट और पीठपर मलो। (ख ) खट-मिट्ठ अनारका रस, तुरंजबीनके साथ स्त्रीको पिलायो । (ग) गरम चीजोंसे स्त्रीको बचाओ। क्योंकि इस हालतमें गरमी करनेवाले उपाय हानिकारक हैं। स्त्रीको ऐसी जगहमें रखो, जहाँ न गरमी हो और न सर्दी । चन्द लाभदायक शिक्षायें । जिस रोज़ बच्चा होनेके आसार मालूम हों, उस दिन ये काम करो:-- (क) बच्चा होनेके दो-चार दिन रह जाय तबसे, स्त्रीको नर्म और चिकने शोरवेका पथ्य दो । भोजन कम और हलका दो। शीतल जल, खटाई और शीतल पदार्थोंसे स्त्रीको बचाओ। किसी भी कारणसे नीचेके अंगोंमें सर्दी न पहुँचने दो। For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy