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स्त्री-रोगोंकी चिकित्सा- प्रसव-विलम्ब-चिकित्सा। ४७३ . (ङ) स्त्रीकी योनिको घोड़े, गधे या ‘खच्चरके खुरोंका धूआँ पहुँचाओ। इनमेंसे जिस जानवरका खुर मिले, उसीका महीन चूरा करके आगपर डालो और स्त्रीको इस तरह बिठाओ कि, धूआँ योनिकी ओर जावे।
(च) अगर स्त्री मांस खानेवाली हो, तो उसे मोटे मुर्गका शोरवा बनाकर पिलाओ।
दूसरे कारणका इलाज । (२) अगर सर्द हवा या और किसी प्रकारकी सर्दी पहुँचनेसे गर्भाशयका मुँह सुकड़ या सिमट गया हो, तो इसका यथोचित उपाय करो। इसके पहचाननेमें कुछ दिक्कत नहीं । अगर गर्भाशय और योनि सर्द या सुकड़े हुए होंगे, तो दीख जायँगे-हाथसे पता लग जायगा। इसके लिये ये उपाय करोः
( क ) स्त्रीको गर्म हम्माममें ले जाकर गुनगुने पानीमें बिठाओ। (ख) गर्म और मवादको नर्म करनेवाले तेलोंकी मालिश करो। (ग) शहदमें एक कपड़ा ल्हेसकर मूत्र-स्थानपर रखो ।
तीसरे कारणका इलाज । (३) गर्भाशयमें बालकके चारों तरफ एक झिल्ली पैदा हो जाती है। इस झिल्लीको "मुसीमिया" कहते हैं। इससे गर्भगत बालककी रक्षा होती है । यह कद्दानेकी थैली-जैसी होती है, पर उससे जियादा चौड़ी होती है । जब बालक निकलनेको ज़ोर करता है और यदि बलवान होता है, तो यह झिल्ली झट फट जाती है। बालक उसमेंसे निकलकर, गर्भाशयके में हमें होता हुआ, योनिके बाहर आ जाता है; पर झिल्ली पीछे निकलती है । अगर यह झिल्ली जियादा मोटी होती है, तो बालकके जोर करनेसे जल्दी नहीं फटती। बच्चा उससे बाहर निकलनेकी कोशिश करता है और उसे इसमें तकलीफ भी बहुत होती
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