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चिकित्सा-चन्द्रोदय । (१) गर्भवतीका मोटा होना। (२) सर्द हवा या सर्दीसे गर्भाशयके मुखका सुकड़ जाना । (३) बालकके ऊपरकी झिल्लीका बहुतही मोटा होना। (४) प्रकृति और हवाफी गरमी ।
__ पहले कारणका इलाज । ___(१) अगर स्त्री मोटी होता है, तो उसका गर्भाशय भी मोटा होता है । मुटाईकी वजहसे गर्भाशयका मुंह तंग हो जाता है; यानी जिस सूराख या राहमें होकर बालक आता है, उस सूराखकी चौड़ाई काफी नहीं होती । अगर बालक दुबला-पतला होता है, तब तो उतनी कठिनाई नहीं होती । अगर कहीं मोटा होता है, तब तो महा विपद्का सामना होता है । ऐसे मौकोंके लिये हकीमोंने नीचे लिखे उपाय लिखे हैं:--
(क) बनफशेका तेल, जम्बकका तेल, जैतूनका तेल, मुर्गे और बतनकी चर्बी एवं गायकी पिंडलीकी चर्बी,-इनको बच्चा जननेवाली स्त्रीके पेट और पीठपर मलो । __(ख) बाबूना, सोया और दोनों मरुवोंको पानीमें श्रौटाकर, उसी पानीमें बच्चा जननेवालीको बिटाओ । यह पानी स्त्रीकी हूँ डी-सू डी या नाभि तक रहना चाहिये । इसलिये ढेर-सा काढ़ा औटाकर एक टबमें भर देना चाहिये और उसीमें स्त्रीको बिठा देना चाहिये।
(ग) जंगली पोदीना और हंसराज इन दोनोंका काढ़ा बनाकर मिश्री मिला दो और स्त्रीको पिलादो ।
(घ) काला दाना, जुन्देवेदस्तर और नकछिकनी-इनको पीसछानकर छींक आनेके लिये स्त्रीको सँघाओ। जब छींक आने लगें, तब स्त्रीके नाक और मुंहको बन्द कर दो, ताकि भीतरकी ओर ज़ोर पड़े और बालक सहजमें निकल आवे ।
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