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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४० चिकित्सा-चन्द्रोदय । बालक होकर थोड़ी उम्रमें ही मर जाते हैं, जिनके कन्या-ही-कन्या पैदा होती हैं, उनके सब दोष दूर होकर उत्तम पुत्र पैदा होता है । इससे योनि-रोग, रजोदोष और योनिस्राव रोग भी आराम होते हैं। नोट-बङ्गसेन और चक्रदत्त प्रभृति सभीने इस नुसखेमें लक्ष्मणाकी जड़ और भी मिलानेको लिखा है। इसके मिला देनेसे इसके गुणोंका क्या कहना ? इसका नाम "वृहत फलघृत" है । (४३) बरियारी, मिश्री, गंगेरन, मुलेठी, काकड़ासिंगी और नागकेशर-इनको बराबर-बराबर लेकर पीस-छान लो। इसमेंसे एक तोला चूर्ण घी, दूध और शहदमें मिलाकर पीनेसे बाँझके भी गर्भ रहता है । परीक्षित है। (४४ ) मोरशिखा-मयूर शिखाकी जड़ अथवा सफ़ेद कटेहली या लक्ष्मणाकी जड़को पुष्य नक्षत्र में लाकर, कँवारी कन्याके हाथोंसे गायके दूधमें पिसवाकर, ऋतुस्नान करके पीनेसे अवश्य गर्भ रहता है। नोट-मोरशिखाके चुप होते हैं । इसपर मारकी चोटीके समान चोटी होती है, इसीसे इसे मेरिशिखा कहते हैं। दवाके काममें इसका सींश लेते हैं। इसकी मात्रा २ माशेकी है । फारसीमें इसे असलान और लैटिनमें सिलीसिया क्रिसटाय कहते हैं। (४५) शिवलिंगीके बीज जीरेके साथ मिलाकर, ऋतुस्नानके बाद, दूधके साथ पीनेसे गर्भ रहता है। नोट-संस्कृतमें शिवलिङ्गीके लिङ्गिनी, बहुपुत्री, ईश्वरी, शिवमल्लिका, चित्रफला और लिङ्गसम्भूता श्रादि नाम हैं। बँगलामें शिवलिङ्गिनी, मरहटीमें शिवलिङ्गी, लैटिनमें ब्रायोनिया लेसिनियोसा (Bryonia Laciniosa.) कहते हैं। यह स्वादमें चरपरी, गरम और बदबूदार होती है । यह रसायन, सर्व-सिद्धिदाता, वशीकरण और पारेको बाँधनेवाली है। इसकी बेल चलती है। इसके फल नीले, गोल और बेरके बराबर होते हैं । फलोंके ऊपर सफ़ द चित्र होते हैं, इसीसे इसे “चित्रफला" कहते हैं। फलोंमेंसे जो बीज निकलते हैं, उनकी श्राकृति शिवलिङ्गके जैसी होती है। इसके पत्त अरण्डके समान होते हैं, पर उनसे छोटे होते हैं। शिवलिङ्गी और शंखिनीके फल एकसे होते हैं, परन्तु For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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