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स्त्री-रोगोंकी चिकित्सा-बाँझका इलाज । ४३६ कर, दाहिनी ओरके नाकके छेद द्वारा पीनेसे पुत्र और बाई ओरके नाकके छेद द्वारा पीनेसे कन्या होती है । परीक्षित है।
(४०) लक्ष्मणाकी जड़ और सुदर्शनकी जड़को कन्याके हाथोंसे पिसवाकर, घी और दूधमें मिलाकर, ऋतुकालमें, पीनेसे उस बाँझके भी पुत्र होता है, जिसकी सन्तान मर-मर जाती है।
(४१) पुष्य नक्षत्रमें बड़के अंकुर, विजयसार और मुंगेका चूर्ण-एक रङ्गकी बछड़ेवाली गायके दूधके साथ पीनेसे पुत्र होता है।
(४२) मेदा, मँजीठ, मुलहटी, कूट, त्रिफला, खिरेंटी, सफेद बिलाईकन्द, काकोली, क्षीर काकोली, असगन्धकी जड़, अजवायन, हल्दी, दारुहल्दी, हींग, कुटकी, नील कमल, दाख, सफ़ेद चन्दन और लाल चन्दन, मिश्री, कमोदिनी और दोनों काकोली-इन सबको दो-दो तोले लेकर पीस-कूट-छान लो। फिर सिलपर रख, जलके साथ पीस लुगदी बना लो।
फिर गायका घी ४ सेर, शतावरका रस १६ सेर और बछड़ेवाली गायका दूध १६ सेर तथा ऊपरकी दवाओंकी लुगदी,-इन सबको क़लईदार कढ़ाहीमें चढ़ाकर, जंगली कण्डोंकी मन्दी-मन्दी आगसे पकाओ। जब शतावरका रस और दूध जलकर घी-मात्र रह जाय, उतारकर छान लो और बर्तन में रख दो । . यह घी अश्विनीकुमारोंका ईजाद किया हुआ है। यह अव्वल दर्जेका ताक़तवर, स्त्रियोंके योनि-रोग और उन्माद--हिस्टीरियापर रामवाण है । यह स्त्रियोंके बाँझपनको निश्चय ही नाश करके पुत्र देता है। हमारा आजमाया हुआ है। इसकी प्रशंसा सच्ची है। बङ्गसेनमें लिखा है, इस घीको पीनेवाला पुरुष औरतोंमें बैलके समान आचरण करता है। स्त्री अगर इसे पीती है, तो मेधासम्पन्न प्रियदर्शन पुत्र जनती है। जिन स्त्रियोंके गर्भ नहीं रहता, जिनके मरे हुए बालक होते हैं, जिनके
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