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चिकित्सा-चन्द्रोदय । (३२) खिरेंटी, कंगी, मिश्री, मुलेठी, दूध, शहद और घी-इन सातोंको एक जगह मिलाकर पीनेसे गर्भ रहता है। - (३३) लक्ष्मणाकी जड़को, दूधमें पीसकर, बत्तीके द्वारा नाकके दाहिने छेदमें डालनेसे पुत्र और बाएँ छेदमें डालनेसे कन्या होती है।
(३४ ) बड़के अंकुरोंको दूधमें पीसकर, बत्ती बनाकर, नाकके दाहिने छेदमें डालनेसे पुत्र और बाएँ में डालनेसे कन्या होती है।
(३५) पुष्य नक्षत्रमें सोनेका पुतला बनाकर, उसे आगमें गरम करके, दूधमें बुझाओ । फिर उस दूधमेंसे ३२ तोला दूध स्त्रीको पिलाओ । इस उपायसे भी गर्भ रहता है । चक्रदत्तमें लिखा है:
कानकान्राजतान्वापि लौहान्पुरुषकानमून् । ध्माताग्नि वर्णान्पयसो दध्मो वाप्युदकस्य वा। क्षिप्त्वाजलौ पिबेत्पुष्ये गर्भे पुत्रत्वकारकान् ॥ सोने, चाँदी या लोहेका सूक्ष्म पुरुष बनाकर, उसे आगमें लाल कर लो और दूध, दही या पानीकी भारी अंजलिमें डालकर निकाल लो। फिर उस दूध, दही या पानीको औरतको पिला दो। इससे गर्भ में पुत्र होता है। यह काम पुष्य नक्षत्र में करना चाहिये ।
(३६) तिलका तेल, दूध, दही, राव और घी--इन सबको मिलाकर मथो और फिर इसमें पीपरोंका चूर्ण डालकर स्त्रीको पिलाओ । अगर वह बाँझ भी होगी, तो भी गर्भ रहेगा। ___ (३७) पुष्य नक्षत्रमें लक्ष्मणाकी जड़को उखाड़कर, कन्यासे पिसवाकर, घी और दूधमें मिलाकर, ऋतुकालके अन्तमें, पीनेसे बाँझके भी पुत्र होता है।
(३८) पताजिया (जीवक) पुत्रकके बीज, पत्ते और जड़को दूधके साथ पीसकर पीनेसे उस स्त्रीके भी सन्तान होती है, जिसकी सन्तान हो-होकर मर गई है।
(३६) सफ़ेद कटेहली (कटाई) की जड़को दूधके साथ पीस
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