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स्त्री-रोगोंकी चिकित्सा-बाँझका इलाज।
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शंखिनीके बीज शंख-जैसे होते हैं, जब कि शिवलिंगीके शिवलिंग-जैसे होते हैं । शंखिनीके फल भी पकनेपर लाल हो जाते हैं, पर इनपर शिवलिंगीके फलोंकी तरह सफ़द-सफ़द छींटे नहीं होते । शंखिनीका फल कड़वा और दस्तावर होता है, पर शिवलिंगीका चरपरा और रसायन होता है।
(४६) पारस-पीपलके बीज सफ़ेद जीरेके साथ मिलाकर, ऋतुस्नानके बाद, दूधके साथ पीनेसे गर्भ रहता है।
नोट--हिन्दीमें पारस-पीपल, गजदण्ड और गजहुण्ड कहते हैं । बंगलामें गजशुण्डी, गुजरातीमें पारशपीपलो और लैटिनमें पोपलनिया कहते हैं।
पारस-पीपल दुर्जर, चिकना, फलमें खट्टा, जड़में मीठा, कसैला और स्वादिष्ट मींगीवाला होता है । इसका पेड़ भी पीपरके समान ही होता है। पीपलके पेड़में फूल नहीं होते, पर पारस-पीपरमें भिन्डीके जैसे पीले फूल भी होते हैं । इसके फलके डोरे भिन्डीके श्राकारके होते हैं । इसकी मात्रा २ माशेकी है।
(४७) बाराहीकन्द, कैथा और शिवलिंगीके बीज-बराबरबराबर लेकर चूर्ण करलो। ऋतुस्नानके बाद, दूधके साथ यह चूर्ण खानेसे अवश्य गर्भ रहता और पुत्र होता है।
(४८) बिदारीकन्दके साथ “सोना-भस्म" खानेसे पुत्र होता है।
(४६ ) काकमाचीके अर्क के साथ "सोना-भस्म" खानेसे गर्भ रहता, रजोधर्म शुद्ध होता और प्रदर रोग नष्ट होता है।
(५०) असगन्धकी जड़के साथ “चाँदीकी भस्म" बच्च वाली गायके दूधमें पीसकर खानेसे बाँझके भी पुत्र पैदा होता है, इसमें शक नहीं। ___ नोट-परीक्षित है। जिस बाँझको किसी तरह गर्भ न रहता हो, वह इसे ३ दिन सेवन करे, अवश्य गर्भ रहेगा।
(५१) मातुलिंगीके बीजोंको बछड़ेवाली गायके दूधमें पीसकर, उसके साथ “चाँदीकी भस्म" खानेसे बाँझके भी पुत्र होता है। इसमें सन्देह नहीं।
(५२) शिवलिंगीके बीजोंके साथ, ऊपरकी विधिसे, दूधमें पीसकर, “चाँदीकी भस्म" खानेसे अवश्य पुत्र होता है।
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