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चिकित्सा-चन्द्रोदय । __- मेदमें होनेसे गाँठ, अण्डवृद्धि, गलगण्ड, अर्बुद, मधुमेह, शरीरका बहुत मोटा हो जाना और बहुत पसीना आना आदि करता है ।
हड्डीमें होनेसे कहीं हाड़का बढ़ जाना, दाँतकी जड़ों और दाँत निकलना तथा नाखून खराब होना वगैरः करता है।
मजामें होनेसे अँधेरी आना, मूर्छा, भ्रम, जोड़ मोटे होना, जाँघ या उसकी जड़का मोटा होना प्रभृति करता है।
शुक्रमें होनेसे नपुंसकता, स्त्री-प्रसङ्ग अच्छा न लगना, वीर्यकी पथरी, शुक्रमेह एवं अन्य वीर्य-विकार आदि करता है ।
दूषी विषके प्रकोपका समय । दूषी विष नीचे लिखे हुए समयों में तत्काल प्रकुपित होता है:(१) अत्यन्त सर्दी पड़नेके समय । (२) अत्यन्त हवा चलनेके समय । (३) बादल होनेके समय।
प्रकुपित दूषी विषके पूर्वरूप । दूषी विषका कोप होनेसे पहले ये लक्षण देखने में आते हैं:अधिक नींद आना, शरीरका भारी होना, अधिक जंभाई आना, अङ्गोंका ढीला होना या टूटना और रोमाञ्च होना।
प्रकुपित दृषी विषके रूप । जब दूषी विषका कोप होता है, तब वह खाना खानेपर सुपारीकासा मद करता है, भोजनको पचने नहीं देता, भोजनसे अरुचि करता है, शरीरमें गाँठ और चकत्ते करता है तथा मांस-क्षय, हाथ-पैरोंमें सूजन, कभी-कभी बेहोशी, वमन, अतिसार, श्वास, प्यास, विषमज्वर और जलोदर उत्पन्न करता है। यानी प्यास बहुत बढ़ जाती है और साथ ही पेट भी बढ़ने लगता है तथा शरीरका रङ्ग बिगड़ जाता है।
दृषी विषके भेदोंसे विकार-भेद । कोई दूषी विष उन्माद करता है, कोई पेटको फुला देता है, कोई.
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