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विष-वर्णन।
है ? इस विषमें उष्णता आदि गुण कम होनेसे, कफ इसे ढके रहता है और कफकी वजहसे अग्नि मन्दी रहती है। इससे यह पचता भी नहीं--बस, इसीसे यह शरीरमें बरसों तक रहा आता है।
जिसके शरीरमें दूषी विष होता है, उसको पतले दस्त लगते हैं, शरीरका रङ्ग बदल जाता है, चेष्टाएँ विरुद्ध होने लगती हैं, चैन नहीं मिलता तथा मूर्छा, भ्रम, वाणीका गद्गदपना और वमन ये रोग घेरे रहते हैं।
स्थान विशेषके कारण दूषी विषके लक्षण । अगर दूपी विष आमाशयमें होता है, तो वात और कफ-सम्बन्धी रोग पैदा करता है।
अगर विष पक्काशयमें होता है, तो वात और पित्त-सम्बन्धी रोग पैदा करता है। ___ अगर दूषी विष बालों और रोमोंमें होता है, तो मनुष्यको पंखहीन पक्षी-जैसा कर देता है। ___ अगर दूषी विष रसादि धातुओं में होता है, तो रस-दोष, रक्त-दोष, मांस-दोष, मेद-दोष, अस्थि-दोष, मज्जा-दोष और शुक्र-दोषसे होनेवाले रोग पैदा करता है: - ___ दूषी विष रसमें होनेसे अरुचि, अजीर्ण, अङ्गमर्द, ज्वर, उबकी, भारीपन, हृद्रोग, चमड़ेमें गुलझट, बाल सफेद होना, मुँहका स्वाद बिगड़ना और थकान आदि करता है।
रक्तमें होनेसे कोढ़, विसर्प, फोड़े-फुन्सी, मस्से, नीलिका, तिल, चकत्ते, झाँई, गंज, तिल्ली, विद्रधि, गोला, वातरक्त, बवासीर, रसौली, शरीर टूटना, जरा खुजलानेसे खून निकलना या चमड़ा लाल हो जाना
और रक्त-पित्त आदि करता है। ___ मांसमें होनेसे अधिमांस, अर्बुद, अर्श, अधिजिह्व, उपजिह्व, दन्तरोग, तालू-रोग, होठ पकना, गलगण्ड और गण्डमाला आदि करता है।
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