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विष-वर्णन। वीर्यको नष्ट कर देता है, कोई वाणीको गद्गद करता है, कोई कोढ़ करता है और कोई अनेक प्रकारके विसर्प और विस्फोटकादि रोग करता है। - नोट-दूषी विष अनेक प्रकारके होते हैं, इसलिए उनके काम भी भिन्नभिन्न होते हैं । दूषो विष-मात्र एक ही तरहके काम नहीं करते। कोई दूषी विष कोढ़ करता है, तो कोई वीर्य क्षीण करता है इत्यादि।
दूषी विष क्यों कुपित होता है ? दिन में बहुत ज़ियादा सोने, कुल्थी, तिल और मसूर प्रभृति अन्न खाने, जलवाले देशोंमें रहने, अधिक हवा चलने, बादल और वर्षा होने वगैरः वगैरः कारणों से दूषी विष कुपित होता है।
. दूषी विषकी साध्यासाध्यता ।
पथ्य सेवन करनेवाले जितेन्द्रिय पुरुषका दूषी विष शीघ्र ही साध्य होता है । एक वर्षके बाद वह याप्य हो जाता है; यानी बड़ी मुश्किलसे आराम होता है या दवा सेवन करते तक दबा रहता है और दवा बन्द होते ही फिर उपद्रव करता है। अगर क्षीण और अपथ्य-सेवी पुरुषको यह दूषी विषका रोग होता है, तो वह आराम नहीं होता। ऐसा अजितेन्द्रिय गल-गलकर मर जाता है। .
कृत्रिम विष भी दूषी विष । । जिस तरह स्थावर और जंगम विष दूषी विष हो जाते हैं, उसी तरह कृत्रिम या मनुष्यका बनाया हुआ विष भी दूषी विष हो जाता है; बशर्ते कि, उसका विषसे सम्बन्ध हो। अगर कृत्रिम विषका सम्बन्ध विषसे नहीं होता, पर वह विषके-से काम करता है, तो उसे "गर-विष" कहते हैं। .
खुलासा यह है कि कई विषों और अन्य द्रव्योंके संयोगसे, मनुष्य द्वारा बनाया हुआ विष “कृत्रिम विष" कहलाता है। यह कृत्रिम विष दो तरहका होता है:
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