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चिकित्सा-चन्द्रोदय । (२४) गाजरके बीज सिलपर पीसकर, पानीमें छान लो और स्त्रीको पिलाओ। इस नुसनेसे बन्द हुआ मासिक होने लगेगा। परीक्षित है। ... ( २५) तितलौकी, साँपकी काँचली, घोषालता, सरसों और कड़वा तेल-इन पाँचोंको आगपर डाल-डालकर, योनिमें धूनी देनेसे, उचित समयपर रजोदर्शन होने लगता है । परीक्षित है। ___ नोट-अंगुलीमें बाल लपेटकर गले में घिसनेसे भी अनेक बार रजोदर्शन होते देखा गया है। ___ (२६) जिन स्त्रियोंका पुष्प जवानीमें ही नष्ट हो जाय-रजोधर्म बन्द हो जाय- उन्हें चाहिये कि “इन्द्रायणकी जड़"को सिलपर जलके साथ पीसकर, छोटी अँगुली-समान बत्ती बना लें और उस बत्तीको योनि या गर्भाशयके मुखमें रखें। इस नुसनेसे कई दिनमें खुलकर रजोधर्म होने लगेगा। परीक्षित है। ... नोट-(१) इस योगसे विधवानोंका रहा हुश्रा गर्भ भी गिर जाता है। इस कामके लिये यह नुसखा परमोत्तम है । “वैद्यजीवन में लिखा है:--- .
मूलंगवाक्ष्याः स्मरमन्दिरस्थं, पुष्पावरोधस्य वधं करोति ।
अभर्तृकानां व्यभिचारिणीनां, योगोऽयमेव द्रुत गर्भपाते ।। - नोट-(२) इन्द्रायण दो तरहकी होती हैं-(१) बड़ी और (२) छोटी । यह ज़ियादातर खारी ज़मीन या कैरों में पैदा होती है। इसके पत्त लम्बेलम्बे और बीचमें कटे-से होते हैं और फूल पीले रङ्गके पाँच पङ्खडोके होते हैं। इसके फल छोटे-छोटे काँटेदार, लाल रंगकी छोटी नारंगीके जैसे सुन्दर होते हैं। इसके बीचमें बीज बहुत होते हैं। - दूसरी इन्द्रायण रेतीली ज़मीनमें होती है। उसका फल पीले रंगका और फूल सनद होता है । दवाके काममें उसके फलका गूदा लिया जाता है। उसकी मात्रा ६. रत्तीसे दो माशे तक है। उसके प्रतिनिधि या बदल इसबन्द, रसौत और निशोथ हैं । इन्द्रायणको बँगला राखालशशा, मरहटीमें लघु इन्द्रावण या लघुकवंडल, गुजरातीमें इन्द्रवारणं और अँगरेजीमें Colocynth. कॉलोसिन्थ कहते हैं । बड़ी इन्द्रायणको बँगलामें
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