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स्त्री-रोगोंकी चिकित्सा-नष्टार्तव । ४०६. बढ़वाकाल, मरहटीमें थोर इन्द्रावण, गुजरातीमें मोटो इन्द्रायण और अँगरेजीमें Bitter apple बिटर एपिल कहते हैं। . (२७) नारंगी, सोंठ, काले तिल और घी-इन चारोंको कूट-पीसकर मिला लो। इसके लगातार पीनेसे बन्द हुआ रजोधर्म निश्चय ही जारी हो जाता है । यह नुसखा “वैद्य सर्वस्व"का है। बहुत उत्तम है । लिखा है:
भाङ्गीशूठी तिल घृतं नष्टपुष्पवती पिबेत् । (२८) गुड़के साथ, काले तिलोंका काढ़ा बनाकर और शीतल करके छान लो । इस नुसनेको कई दिन बराबर पीनेसे बहुत समयसे बन्द हुआ रजोधर्म फिर होने लगता है । “वैद्यरत्न"में लिखा है:--.
सगुड़ः श्यामतिलानांक्वाथः पीतः सुशीतलो नाया। जनयति कुसुमं सहसागतमपि सुचिरं यमान्तिकम् ।। गुड़के साथ काले तिलोंका काढ़ा बनाकर और शीतल करके पीनेसे, बहुत काल से रजोवती न होनेवाली नारी भी रजोवती होती है।
(२६) भारंगी, सोंठ, बड़ी पीपर, काली मिर्च और काले तिल इन सबको मिलाकर दो तोले लाओ और पावभर पानीके साथ हाँडीमें
औटाओ। जब चौथाई जल रह जाय, उतारकर छान लो और पीओ। इस नुसनेसे रुका या अटका हुआ आर्तव फिर जारी हो जाता है। यानी खुलासा रजोधर्म होता है । परीक्षित है। वैद्यवर विद्यापति लिखते हैं:
भाङ्गीव्योषयुतः क्वाथस्तिलजः पुष्परोधहा । ( ३० ) वही वैद्यवर विद्यापति कहते हैं:--
रामठं च कणा तुम्बीबीजं क्षारसमन्वितम् । दन्ती सेहुण्डदुग्धाभ्यां वत्तिं कृत्वा भगे न्यसेत् ।
अयं पुष्पावरोधाय नारीगर्भदमुत्तमम् ।। ___ हींग, पीपल, कड़वी तूम्बीके बीज, जवाखार और दन्तीकी जड़
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