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स्त्री-रोगोंकी चिकित्सा-नष्टार्तव । ४०७ तीनोंको छटाँक छटाँक-भर लाकर, कूट-पीस और छानकर रख लो। इस चूर्णमेंसे हथेली-भर चूर्ण फाँककर, ऊपरसे गरम जल पीनेसे खून-हैज़ जारी हो जाता, यानी रजोधर्म होने लगता है । परीक्षित है ।
नोट--इस नुसख को तीन-चार दिन लेनेसे खून-हैज़ जारी होता और रहा हुआ गर्भ भी गिर जाता है। परीक्षित है।
(२०) काँडबेलको गरम राख या भूभलमें भूनकर, उसका दो तोले रस निकाल लो और उसमें उतना ही घी तथा एक तोले “गोपीचन्दनका चूर्ण' एवं एक तोले "मिश्री" मिलाकर पीओ। इससे औरतोंके रज-सम्बन्धी सभी दोष दूर हो जाते हैं। परीक्षित है।
(२१) बिनौलेके तेलमें--एक या दो माशे इलायची, जीरा, हल्दी और सेंधानोन मिलाकर, छोटी अँगुलीके बराबर बत्ती या गोली बनाकर, महीन कपड़ेमें उसे लपेटकर, चौथे दिनसे स्त्री उस पोटलीको योनिमें बराबर रखेगी, तो नष्ट पुष्प या नष्टार्तव फिरसे जी जायगा, रजोधर्म होने लगेगा। रजोधर्म ठीक समयपर न होता होगा, कम-अधिक दिनोंमें-महीनेसे चढ़-उतरकर होता होगा, तो ठीक समयपर खुलकर होने लगेगा। परीक्षित है।
(२२) खिरनीके बीजोंकी मींगी निकालकर सिलपर पीस लो। फिर एक महीन वस्त्र में रखकर, उस पोटलीको स्त्रीकी योनिमें कई दिन तक रखाओ । पोटली रोज ताजा बनाई जाय । इस पोटलीसे ऋतुकी प्राप्ति होगी, यानी बन्द हुआ मासिक-धर्म फिरसे होने लगेगा। परीक्षित है। . (२३ ) खीरेतीके फलोंका चूर्ण "नारियलके स्वरस में मिलाकर एक या तीन दिन देनेसे ही रजोधर्म होने लगता है। परीक्षित है। . नोट-खीरेती नाम मरहटी है। संस्कृतमें इसे “फल्गु" कहते हैं। यह पेड़ बहुत होता है । इसके पत्तोंपर पारीके-से दाँते होते हैं। कोंकन देशमें इसके पत्तोंसे लकड़ी साफ़ करते हैं, क्योंकि इनसे लकड़ी चिकनी हो जाती है। कटुम्बरके फल और पत्त-जैसे ही खीरेतीके फल और पत्ते होते हैं।
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