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स्त्री-रोगोंकी चिकित्सा-योनिरोग। . नोट-गुड़ च्यादि घृत विशेषकर वातज योनिरोगोंमें स्त्रीको उचित मात्रासे खिलाना-पिलाना चाहिये।
(२०) कड़वे नीमकी निबौलियोंको नीमके रसमें पीसकर, योनिमें रखने या लेप करनेसे, योनि-शूल मिट जाता है । परीक्षित है।
(२१) अरण्डीके बीज नीमके रसमें पीसकर गोलियाँ बना लो। इन गोलियोंको योनिमें रखने या पानीमें पीसकर इनका लेप करनेसे योनि-शूल मिट जाता है। __(२२) आमलेकी गुठली, बायबिडंग, हल्दी, रसौत और कायफल--इनको बराबर-बराबर लेकर और कूट-पीसकर छान लो। पीछे इस चूर्ण को "शहद में मिला-मिलाकर रोज योनिमें भरो । इस नुसनेसे “योनिकन्द" रोग निश्चय ही नाश हो जाता है। पर इसे भरनेसे पहले, हरड़, बहेड़े और आमलेके काढ़ेमें "शहद" मिलाकर, उससे योनिको सींचना या धोना उचित है; अर्थात् इस काढ़ेसे योनिको धोकर, पीछे ऊपरका चूर्ण शहदमें मिलाकर योनिमें भरना चाहिये। काढ़ा नित्य ताजा बनाना चाहिये।
(२३) मजीठ, मुलेठी, कूट, हरड़, बहेड़ा, आमला, खाँड़, खिरेंटी, एक-एक तोले, शतावर दो तोले, असगन्ध चार तोले, असगन्धकी जड़ १ तोले तथा अजमोद, हल्दी, दारुहल्दी, फूलप्रियंगू, कुटकी, कमल, बबूला-कुमुदिनी, दाख, काकोली, क्षीरकाकोली, सफेद चन्दन और लाल चन्दन-ये सब एक-एक तोले लाकर, पीसकूटकर छान लो। फिर छने चूर्णको सिलपर रख और जलके साथ पीसकर कल्क या लुगदी बना लो। __चौंसठ तोले गायका घी, १२८ तोले शतावरका रस और १२८ तोले दूध तथा ऊपरकी लुगदी-इन सबको कलईदार कढ़ाहीमें रख, मन्दाग्निसे चूल्हेपर पकाओ । जब घीकी विधिसे घी तैयार हो जाय, उतारकर छान लो और रख दो। इसका नाम “फलघृत" है।
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