________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
३८०
चिकित्सा-चन्द्रोदय । सेवन-विधि-इस घीको अगर पुरुष पीता है, तो उसकी मैथुनशक्ति अतीव बढ़ जाती है और उसके वीर, रूपवान् और बुद्धिमान् पुत्र पैदा होते हैं।
जिन स्त्रियोंकी सन्तान मरी हुई होती है, जिनकी सन्तान होकर मर जाती है, जिनका गर्भ रहकर गिर जाता है अथवा जिनके लड़की-ही-लड़की होती हैं, उनके इस घीके पीनेसे दीर्घायु, गुणवान्, रूपवान् और बलवान् पुत्र होता है।
इस घीके पीनेसे योनि-स्राव,--योनिसे मवाद गिरना, रजोदोष--रजोधर्म ठीक और शुद्ध न होना तथा दूसरे योनि-रोग नाश हो जाते हैं। यह घी सन्तान और वायुको बढ़ानेवाला है । इस 'फलघृत'को अश्विनीकुमारोंने कहा है।
नोट-हमने यह घत भावप्रकाशसे लिया है । इसमें “साद कटेरीकी जड़" डालना नहीं लिखा है, तथापि वैद्य लोग उसे डालते हैं। वैद्य लोग इसके लिये जिसका बछड़ा जीता हो और जिसका एक ही रंग हो अर्थात् माता और बछड़े दोनों एक ही रङ्गके हों-ऐसी गायका घी लेते हैं और सदासे इसे पारने या जंगली कण्डोंकी श्रागपर पकाते हैं। ____ यह घृत अनेक ग्रन्थों में लिखा है । सबमें कुछ-न-कुछ भेद है। उनमें हींग, बच, तगर और दूना बिदारीकन्द--ये दवाएँ और भी लिखी हैं। वैद्य चाहें तो इन्हें डाल सकते हैं।
(२४) घीका फाहा अथवा तेलका फाहा या शहदका फाहा योनिमें रखनेसे, योनिके सभी रोग नाश हो जाते हैं, पर फाहा बहुत दिनों तक रखना चाहिये । परीक्षित है।
(२५) मैनफल, शहद और कपूर--इनको पीसकर, अँगुलीसे योनिमें लगानेसे गिरी हुई भग ठीक होती, उसकी नसें सीधी होती और वह सुकड़कर तंग भी हो जाती है । परीक्षित है। नोट-चक्रदत्त में लिया है:--
मदनफलमधुकरपूरितं भवति कामिनीजनस्य । विगलित यौवनस्य च वराङ्गमति गाढं सुकुमारम् ॥
For Private and Personal Use Only