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चिकित्सा-चन्द्रोदय |
(१६) तगर, कूट, सेंधानोन, भटकटैया का फल और देवदारु-इनका तेल पकाकर, उसी तेल में रूईका फाहा भिगोकर, योनिमें - लगातार कुछ दिन रखनेसे, वातज योनि-रोग- उदावृत्ता, बन्ध्या; विप्लुता, परिप्लुता और वातला योनि-रोग अवश्य आराम हो जाते हैं। इसका नाम " ताद्य" तेल है । ( इसके बनाने की विधि पृष्ठ ३७३ के नं० ३ में देखो । )
नोट-तेलका फाहा रखनेसे पहले गिलोय, त्रिफला और दातुनिकी जड़'इनके कासे योनिको सींचना और धोना ज़रूरी है। दोनों काम करनेसे पाँचों बादी के योनिरोग निस्सन्देह नाश हो जाते हैं । अनेक बार परीक्षा की है ।
( १७ ) तिलका तेल १ सेर, गोमूत्र १ सेर, दूध २ सेर और गिलोयका कल्क एक पाव-- इन सबको कढ़ाही में चढ़ाकर मन्दाग्निसे पकाओ । जब तेल- मात्र रह जाय, उतारकर छानलो । इस तेलमें रूईका फाहा भिगोकर, योनिमें रखनेसे, वातजनित योनि-पीड़ा शान्त हो जाती है । बादी के योनि रोगों में यह तेल उत्तम है । इसका - नाम “गुड़ च्यादि तेल" है ।
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(१८) इलायची, धायके फूल, जामुन, मँजीठ, लजवन्ती, मोचरस - और राल- इन सबको पीस-छानकर रख लो। इस चूर्णको योनिमें रखने से योनिकी दुर्गन्ध, लिबलिबापन तथा तरी रहना आदि विकार नष्ट हो जाते हैं ।
(१६) गिलोय, त्रिफला, शतावर, श्योनाक, हल्दी, अरणी, पियाबाँसा, दाख, कसौंदी, बेलगिरी और फालसे - इन ग्यारह दवाओंको एक-एक तोले लेकर कूट-पीसकर, सिलपर रख लो और पानी के साथ फिर पीसकर, लुगदी बना लो । इस लुगदीको आधसेर 'घी' के साथ कईदार कढ़ाही या देगची में रखकर मन्दाग्नि कालो । इनका नाम "गुड़ च्यादि घृत" है । यह घृत योनि-रोगों और वातविकारों को नष्ट करता तथा गर्भ स्थापन करता है ।
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