SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 404
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्त्री-रोगोंकी चिकित्सा-योनिरोग । (ज) रूईका फाहा तेलमें तर करके बलानुसार योनिके भीतर रखना। इससे योनिके शूल,पीड़ा,सूजन, और स्राव वगैरः दूर हो जाते हैं। (झ) टेढ़ी योनिको हाथसे नवाना, सुकड़ी हुईको बढ़ाना और बाहर निकली हुईको भीतर घुसाना। (३) वातज योनि-रोगों में--गिलोय, त्रिफला और दातूनिकी जड़-इन तीनोंके काढ़ेसे योनिको धोना चाहिये। इसके बाद नीचे लिखा तेल बनाकर, उसमें रूईका फाहा तर करके, जब तक रोग आराम न हो, बराबर योनिमें रखना चाहिये । ___ कूट, सेंधानोन, देवदारु, तगर और भटकटैयाका फल-इन सबको पाँच-पाँच तोले लेकर अधकचरा कर लो और फिर एक हाँडीमें पाँच सेर पानी भरकर, उसमें कुटी हुई दवाएँ डालकर औटाओ । जब पाँचवाँ भाग पानी रह जाय, उतारकर मल छान लो। फिर एक क़लईदार कढ़ाईमें एक पाव काली तिलीका तेल डालकर, ऊपरसे छना हुआ काढ़ा डाल दो और चूल्हेपर रखकर मन्दी-मन्दी आगसे पकाओ। जब पानी जलकर तेल-मात्र रह जाय, उतारकर, शीतल होनेपर छान लो और काग लगाकर शीशीमें रख दो। नोट-पाँचों वातज योनि-रोगोंपर ऊपर लिखा योनि धानेका जल और यह तेल अनेक वारके परीक्षित हैं। जल्दी न की जाय और आराम न होने तक बराबर दोनों काम किये जायँ, तो १०० में १० को आराम होता है। (४) पित्तज योनि-रोगोंमें योनिको कादोंसे सींचना, धोना, तेल लगाना और तेलके फाहे रखना अच्छा है। पित्तज रोगमें शीतल और पित्तनाशक नुसरन काममें लाने चाहिये । शीतल दवाओंके तरड़े देने और फाहे रखनेसे अनेक बार तत्काल लाभ दीखता है। पित्तज योनिरोगोंमें गरम उपचार भयानक हानि करता है । ___ शतावरी घृत और बला तेल-ये दोनों पित्त-नाशक प्रयोग अच्छे हैं। (५) कफजनित योनि-रोगोंमें शीतल उपचार कभी न करना चाहिये। ऐसे योनि-रोगोंमें गर्म उपचार कायदा करता है। कफजन्य For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy