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३.७४
चिकित्सा - चन्द्रोदय ।
योनि रोगों में रूखी और गरम दवायें देना अच्छा है। उधर पृष्ठ ३७७ में लिखी नं० १५ बत्ती ऐसे रोगों में अच्छी पाई गई है ।
( ६ ) वातसे पीड़ित योनि में हींगके कल्क में घी मिलाकर योनिमें रखना चाहिये ।
पित्त से पीड़ित योनि में पंचवल्कलके कल्कमें घी मिलाकर योनिमें रखना चाहिये ।
कफजन्य योनि रोगोंमें श्यामादिक औषधियोंके कल्क या लुगदी में घी मिलाकर योनि में रखना चाहिये ।
अगर योनि कठोर हो, तो उसे मुलायम करनेवाली चिकित्सा करनी चाहिये ।
सन्निपातज योनि-रोग में साधारण क्रिया करनी चाहिये । अगर योनिमें बदबू हो, तो सुगन्धित पदार्थोंके काढ़े, तेल, कल्क या चूर्ण योनि में रखने से बदबू नहीं रहती । जैसे- पृष्ठ ३७८ का नं० १८ नुसखा ।
(७) याद रखो, सभी तरह के योनि रोगों में " वातनाशक चिकित्सा ” उपकारी है, पर वातज-योनि - रोगों में स्नेहन, स्वेदन और वस्ति कर्म विशेष रूपसे करने चाहियें । कहा हैः
सर्वेषु योनिरोगेषु वातघ्नः क्रमइष्यते । स्नेहनः स्वेदनो वस्तिर्वातायां विशेषतः ||
योनि - रोग नाशक नुमखे ।
( १ ) " चरक" में योनि रोगोंपर "धांतक्यादि" तेल लिखा है । उस तेलका फाहा योनि में रखने और उसीकी पिचकारी योनिमें लगानेसे विप्लुता आदि योनि-रोग, योनिकन्द-रोग, योनिके घाव, सूजन
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