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स्त्री-रोगोंकी चिकित्सा-योनिरोग । ३७१ - नोट-ऐसी यानिवाली स्त्री कभी एक पुरुषकी होकर नहीं रह सकती। चरणा और अतिचरणा योनिवाली स्त्रियोंको गर्भ नहीं रहता।
(१५) जो योनि अत्यन्त चिकनी हो, जिसमें खुजली चलती हो और जो भीतरसे शीतल रहती हो, वह “कफजा" योनि है।
नोट-अत्यानन्दा, कर्णिनी, चरणा और अतिचरणा--चारों योनियोंमें कफका दोष होता है, पर कफजामें कफ-दोष विशेष होता है। ___ (१६) जिस स्त्रीको मासिक धर्म न होता हो, जिसके स्तन छोटे हों और मैथुन करनेसे योनि लिंगको खरदरी मालूम होती हो, उसकी योनि “पण्डी" है।
(१७) थोड़ी उम्रवाली स्त्री अगर बलवान पुरुषसे मैथुन कराती है, तो उसकी योनि अण्डेके समान बाहर लटक आती है। उस योनिको "अण्डिनी" कहते है।
नोट-इस रोगवालीका रोग शायद ही आराम हो। इसको गर्भ नहीं रहता।
(१८) जिस स्त्रीकी योनि बहुत फैली हुई होती है, उसे "महती" योनि कहते हैं।
(१६ ) जिस स्त्रीकी योनिका छेद बहुत छोटा होता है, वह मैथन नहीं करा सकती, केवल पेशाब कर सकती है, उसकी योनिको "सूची वक्त्रा” कहते हैं। __ नोट-ऊपरके योनिरोग वातादि दोषोंसे होते हैं, पर जिस योनि-रोगमें तीनों दोषोंके लक्षण पाये जावें, वह त्रिदोषज है।
योनिकन्द रोगके लक्षण । जब दिनमें बहुत सोने, बहुत ही क्रोध करने, अत्यन्त परिश्रम करने, दिन-रात मैथुन कराने, योनिके छिल जाने अथवा नाखून या दाँतोंके लग जानेसे योनिके भीतर घाव हो जाते हैं, तब वातादि दोष, कुपित होकर, पीप और खूनको इकट्ठा करके, योनिमें बड़हलके फल-जैसी गाँठ पैदा कर देते हैं, उसे ही “योनिकन्द रोग" कहते हैं ।
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