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चिकित्सा - चन्द्रोदय ।
479 (८) जिसकी योनि अधिक देर तक मैथुन करनेसे, लिंगकी रगड़ के मारे, बाहर निकल आवे; यानी स्थानभ्रष्ट हो जाय और विमर्दित करनेसे प्रसव - योग्य न हो, उसे "प्रत्र सिनी" योनि कहते हैं । अगर ऐसी स्त्रीको कभी गर्भ रह जाता है, तो बच्चा बड़ी मुश्किल से निकलता है ।
( ६ ) जिस स्त्रीको रुधिर-क्षय होनेसे गर्भ न रहे, वह "पुत्रघ्नी" योनिवाली है । ऐसी योनिवाली स्त्रीका मासिक खून गर्म होकर कम हो जाता और गर्भगत बालक अकाल या असमय में ही गिर जाता है।
(१०) जो योनि अत्यन्त दाह, पाक और ज्वर, इन लक्षणोंवाली हो, वह "पित्तला " है । खुलासा यों समझिये कि इस योनिवाली स्त्री की भगके भीतर दाह या जलन होती है और भगके मुँहपर छोटी-छोटी फुन्सियाँ हो जाती हैं और पीड़ासे उसे ज्वर चढ़ आता है ।
नोट - यद्यपि लेोहिताक्षरा, प्रत्र सिनी, पुत्रघ्नी और वामनीमें पित्तकोप के चिह्न पाये जाते हैं और वे चारों योनिरोग पित्तसे ही होते हैं, पर पित्तला योनि रोगमें पित्तकेोपके लक्षण विशेष रूप से देखे जाते हैं । दाह, पाक और ज्वर पित्तलाके उपलक्षण मात्र हैं । उसमेंसे नीला, पीला और सफ़ ेद आर्त्तव बहता रहता है ।
( ११ ) जिस स्त्रीकी योनि अत्यधिक मैथुन करनेसे भी सन्तुष्ट न हो, उसे "अत्यानन्दा" योनि कहते हैं। इस योनिवाली स्त्री एक दिन - में कई पुरुषोंसे मैथुन करानेसे भी सन्तुष्ट नहीं होती। चूँकि इस योनिवाली एक पुरुषसे राजी नहीं होती, इसीसे इसे गर्भ नहीं रहता ।
(१२) जिस स्त्रीकी योनि के भीतर के गर्भाशय में कफ और खून मिलकर, कमल के इर्द-गिर्द मांसकन्द-सा बना देते हैं, उसे “कर्णिनी" कहते हैं।
( १३ ) जो स्त्री मैथुन करनेसे पुरुषसे पहले ही छूट जाती है और वीर्य ग्रहण नहीं करती, उसकी योनि " चरणा" है ।
(१४) जो स्त्री कई बार मैथुन करनेपर छूटती है, उसकी योनि "अति चरणा" है ।
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