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स्त्री-रोगोंकी चिकित्सा-योनिरोग। ३६६ बीसों योनि-रोगोंमेंसे कोई-न-कोई योनि-रोग होता है। सबसे प्रबल कारण दैवेच्छा है।
बीसों योनि-रोगोंके लक्षण । (१) जिस स्त्रीकी योनिसे झाग-मिला हुआ खून बड़ी तकलीफके साथ झिरता है, उसे "उदावृत्ता" कहते हैं।
नोट--उदावृत्ता योनि रोगवाली स्त्रीका मासिक-धर्म बड़ी तकलीफसे होता है, उसके पेड़ में दर्द होकर रककी गाँठ-सी गिरती है। ' (२) जिसका आर्तव नष्ट हो; यानी जिसे रजोधर्म न होता हो, अगर होता हो तो अशुद्ध और ठीक समयपर न होता हो, उसे "बन्ध्या " कहते हैं।
(३) जिसकी योनिमें निरन्तर पीड़ा या भीतरकी ओर सदा एक तरहका दर्द-सा होता रहता है, उसे "विप्लुता" योनि कहते हैं।
(४) जिस स्त्रीके मैथुन कराते समय योनिके भीतर बहुत पीड़ा होती है, उसे "परिप्लुता" योनि कहते हैं।
(५) जो योनि कठोर या कड़ी हो तथा उसमें शूल और चोंटनेकीसी पीड़ा हो, उसे “वातला" योनि कहते हैं। इस रोगवालीका मासिक खून या आर्तव बादीसे रूखा होकर सूई चुभानेका-सा दर्द करता है।
नोट--यद्यपि उदावृत्ता, बन्ध्या, विप्लुता, और परिप्लुता नामक योनियों में वायुके कारणसे दर्द होता रहता है, पर "वातला" योनिमें उन चारोंकी अपेक्षा अधिक दर्द होता है । याद रखो, इन पाँचों योनिरोगोंमें "वायु"का कोप रहता है।
(६) जिस योनिसे दाहयुक्त रुधिर बहता है। यानी जिस योनिसे जलनके साथ गरम-गरम खून बहता है, उसे “लोहिताक्षरा" कहते हैं । ___ (७) जिस स्त्रीकी योनि, पुरुषके मैथुन करनेके बाद, पुरुषके वीर्य और स्त्रीकी रज दोनोंको बाहर निकाल दे, उसे “वामनी" योनि कहते हैं।
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