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विष-वर्णन।
... (९०) मूलकसे शरीरका रंग बिगड़ जाता, कय होती, हिचकियाँ चलती तथा सूजन और मूढ़ता होती है ।
(११) हालाहलसे श्वास रुक-रुककर आता और आदमी काला हो जाता है।
(१२) महाविषसे हृदयमें गाँठ होती और भयानक शूल होता है।
(१३) कर्कटकसे आदमी ऊपरको उछलता और हँस-हँसकर दाँत चबाने लगता है। भावप्रकाशमें लिखा है:--
कन्दजान्युग्र वीयाणि यान्युक्तानि त्रयोदशः । सुश्रुतादि ग्रन्थोंमें लिखे हुए तेरह विष बड़ी उग्र शक्तिवाले होते हैं, यानी तत्काल प्राण नाश करते हैं।
आजकल काममें आनेवाले कन्द-विष। . आजकल सुश्रुतके तेरह और भावप्रकाशके नौ विष बहुत कम मिलते हैं । इस समय, इनमें से "वत्सनाभ विष" और "सींगिया विष" ही अधिक काममें आते हैं। अगर ये युक्तिके साथ काममें लाये जाते हैं, तो रसायन, प्राणदायक, योगवाही, त्रिदोषनाशक, पुष्टिकारक और वीर्यवर्द्धक सिद्ध होते हैं। अगर बेकायदे सेवन किये जाते हैं, तो प्राण-नाश करते हैं।
अशुद्ध विष हानिकारक । अशुद्ध विषके दुर्गुण उसके शोधन करनेसे दूर हो जाते हैं। इसलिये दवाओं के काममें विषोंको शोधकर लेना चाहिये । कहा है
ये दुगुणा विषेऽशुद्ध ते स्युहीना विशोधनात् । तस्माद विषं प्रयोगेषु शोधयित्वा प्रयोजयेत ॥
विषमात्रके दश गुण । कुशल वैद्योंको विषोंकी परीक्षा नीचे लिखे हुए दश गुणोंसे करनी चाहिये । अगर स्थावर, जंगम और कृत्रिम विषोंमें ये दशों गुण होते
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