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चिकित्सा-चन्द्रोदय । (५) सौराष्ट्रिक विष-जो विष सौराष्ट्र देशमें पैदा होता है, उसे "सौराष्टिक विष" कहते हैं।
(६) श्रृंगिक विष--जिस विषको गायके सींगके बाँधनेसे दूध लाल हो जाय, उसे "शृंगिक" या "सींगिया विष" कहते हैं।
(७) कालकूट विष--पीपलके जैसे वृक्षका गोंद होता है। यह शृङ्गवेर, कोंकन और मलयाचलमें पैदा होता है।
(८) हालाहल विष-इसके फल दाखोंके गुच्छोंके जैसे और पत्ते ताड़के जैसे होते हैं। इसके तेजसे आस-पासके वृक्ष मुझी जाते हैं। यह विष हिमालय, किष्किन्धा, कोंकन देश और दक्षिण महासागरके तटपर होता है।
(६) ब्रह्मपुत्र विष-इसका रङ्ग पीला होता है और यह मलयाचल पर्वतपर पैदा होता है।
- कन्द-विषोंके उपद्रव । सुश्रुतमें लिखा है:--
(१) कालकूट विषसे स्पर्श-ज्ञान नहीं रहता, कम्प और शरीरस्तम्भ होता है।
(२) वत्सनाभ विषसे ग्रीवा-स्तम्भ होता है तथा मल-मूत्र और नेत्र पीले हो जाते हैं। . (३) सर्षपसे तालूमें विगुणता, अकारा और गाँठ होती है ।
(४) पालकसे गर्दन पतली पड़ जाती और बोली बन्द हो जाती है।
(५) कर्दमकसे मल फट जाता और नेत्र पीले हो जाते हैं । __ (६) वैराटकसे अङ्गमें दुःख और शिरमें दर्द होता है ।
(७) मुस्तकसे शरीर अकड़ जाता और कम्प होता है ।
(८) शृङ्गी विषसे शरीर ढीला हो जाता, दाह होता और पेट फूल जाता है।
(2) प्रपौंडरीक विषसे नेत्र लाल होते और पेट फूल जाता है।
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