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विष-वर्णन।
कुल मिलाकर पचपन प्रकारके स्थावर विष लिखे हैं; पर बहुतसे नाम अाजकलको भाषामें नहीं मिलते, किसी कोषमें भी उनका पता नहीं लगता; इसलिये हम उन्हें छोड़ देते हैं। जब कोई समझेगा ही नहीं, तब लिखनेसे क्या लाभ ? हाँ, कन्द-विषोंका संक्षिप्त वर्णन किये देते हैं।
कन्द-विष । सुश्रुतने नीचे लिखे तेरह कन्द-विष लिखे हैं:
(१) कालकूट, (२) वत्सनाभ, (३) सर्षप, (४) पालक, (५) कर्दमक, (६) वैराटक, (७) मुस्तक, (८) शृंगीविष, (६) 'प्रपौंडरीक, (१०) मूलक, (११) हालाहल, (१२) महाविष, और (१३) कर्कटक ।
इनमें भी वत्सनाभ विष चार तरहका, मुस्तक दो तरहका, सर्षप छै तरहका और बाकी सब एक-एक तरहके लिखे हैं।
भावप्रकाशमें विष नौ तरहके लिखे हैं । जैसे,--
(१) वत्सनाभ, (२) हारिद्र, (३) सक्तुक, (४) प्रदीपन, (५) सौराष्ट्रिक, (६) शृंगिक, (७) कालकूट, (८) हालाहल, और (६) ब्रह्मपुत्र ।
कन्द विषोंको पहचान । (१) वत्सनाभ विष--जिसके पत्ते सम्हालूके समान हों, जिसकी आकृति बछड़ेकी नाभिके जैसी हो और जिसके पास दूसरे वृक्ष न लग सकें, उसे "वत्सनाभ विष" कहते हैं ।
(२) हारिद्र विष--जिसकी जड़ हल्दीके वृक्षके सदृश हो, वह "हारिद्र विष" है। . (३) सक्तुक विष-जिसकी गाँठमें सत्तू के जैसा चूरा भरा हो, वह “सक्तुक विष" है।
(४) प्रदीपन विष--जिसका रङ्ग लाल हो, जिसकी कान्ति अग्निके समान हो, जो दीप्त और अत्यन्त दाहकारक हो, वह "प्रदीपन विष" है।
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