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चिकित्सा-चन्द्रोदय। हैं, तो वे मनुष्यको तत्काल मार डालते हैं। सुश्रुतादिक ग्रन्थोंमें लिखा हैः--
रुक्ष्मुष्णं तथा तीक्ष्णं सूक्ष्ममाशु व्यवायि च ।
विकाशि विषदश्चैव लध्वपाकि च ततमतम् ।। (१) रुक्ष, (२) उष्ण, (३) सूक्ष्म, (४) आशु, (५) व्यवायी, (६) विकाशी, (७) विषद, (८) लघु, (६) तीक्ष्ण, और (१०) अपाकी,-ये दश गुण विषों में होते हैं।
दश गुणोंके कार्य । ऊपरके रुक्ष, उष्ण आदि दश गुणों के कार्य इस भाँति होते हैं:
(१) विष बहुत ही रूखा होता है, इसलिये वह वायुको कुपित करता है।
(२) विष उष्ण यानी गरम होता है, इसलिये पित्त और खूनको कुपित करता है।
(३) विष तीक्ष्ण-तेज़ होता है, इसलिये बुद्धिको मोहित करता, बेहोशी लाता और शरीरके मर्म या बन्धनोंको तोड़ डालता है।
( ४ ) विष सूक्ष्म होता है, इसलिये शरीरके बारीक छेदों और अवयनोंमें घुसकर उन्हें बिगाड़ देता है।
(५) विष आशु होता है; यानी बहुत जल्दी-जल्दी चलता है, इसलिये इसका प्रभाव शरीरमें बहुत जल्दी होता है और इससे यह तत्काल फैलकर प्राण-नाश कर देता है। __(६) विष व्यवायी होता है। पहले सारे शरीरमें फैलता और पीछे पकता है, अतः सब शरीरकी प्रकृतिको बदल देता या अपनी-सी कर देता है।
(७) विष विकाशी होता है, इसलिये दोषों, धातुओं और मलको नष्ट कर देता है।
(८) विष विषद होता है, इसलिये शरीरको शक्तिहीन कर देता या दस्त लगा देता है।
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