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स्त्री-रोगोंकी चिकित्सा-प्रदर रोग। लो और शीशीमें रख दो । इस लौहसे सब तरहके प्रदर रोग निश्चय ही नाश हो जाते हैं। । सेवन-विधि-सवेरे-शाम एक-एक गोली खाकर, ऊपरसे जरा-सा जल पी लेना चाहिए। गोली खाकर, ऊपरसे अशोककी छालके साथ पकाया दूध, जिसकी विधि पहले पृष्ठ ३४४ में लिख आये हैं, पीनेसे बहुत ही जल्दी अपूर्व चमत्कार दीखता है। अथवा गोली खाकर, रसौत और चौलाईकी जड़को पीसकर, चाँवलोंके पानीमें छान लो और यही पीओ । यह अनुपान परीक्षित है।
शतावरी घृत। .. शतावरका गूदा या रस आध सेर, गायका घी आध सेर, गायका दूध दो सेर लाकर रख लो। जीवनीयगणकी आठों दवाएँ तथा मुलेठी, चन्दन, पद्माख, गोखरू, कौंचके बीजोंकी गिरी, खिरेंटी, कंघी, शालपर्ण, पृश्निपर्णी, विदारीकन्द, दोनों शारिवा, मिश्री और कुम्भेरके फल - इनमें से हरेक दवाको पानीके साथ सिलपर पीसपीस-कर, एक-एक तोले कल्क बना लो । शेषमें सब दवाओंके कल्क, शतावरका रस, घी और दूध सबको कलईदार बर्तनमें चढ़ाकर मन्दाग्निसे घी पका लो। इस “शतावरी घृत"के सेवन करनेसे रक्त पित्तके विकार, वातपित्तके विकार, वातरक्त, क्षय, श्वास, हिचकी, खाँसी, रक्तपित्त, अङ्ग-दाह, सिरकी जलन, दारुण मूत्रकृच्छ और सर्वदोष-जनित प्रदर रोम इस तरह नाश होते हैं, जिस तरह सूर्यसे अन्धकारका नाश होता है।
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