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* सोमरोगकी चिकित्सा।
- सोमरोगकी पहचान । OSHO की योनिसे जब प्रसन्न, निर्मल, शीतल, गंधरहित, साफ़, स्त्री सफ़ेद और पीड़ा-रहित जल बहुत ही जियादा बहता
8 रहता है, तब वह स्त्री जलके वेगको रोक नहीं सकती, एकदम कमजोर हो जानेकी वजहसे बेचैन रहती है, माथा शिथिल हो जाता है, मुँह और तालू सूखने लगते हैं, बेहोशी होती, जंभाई आती, चमड़ा रूखा हो जाता, प्रलाप होता और खाने-पीनेक पदार्थोंसे कभी तृप्ति नहीं होती । जिस रोगमें ये लक्षण होते हैं, उसे “सोमरोग" कहते हैं। इस रोगमें जो पानी योनिसे जाता है, वही शरीरको धारण करनेवाला है। इस रोगमें सोमधातुका नाश होता है, इसीलिये इसे “सोमरोग" कहते हैं। - जिस तरह पुरुषोंको बहुमूत्र रोग होता है। उसी तरह स्त्रियोंको "सोमरोग' होता है। जिस तरह पेशाबों-पर-पेशाब करनेसे मर्द मर जाता है; उसी तरह स्त्रियाँ, योनिसे सोम धातु जानेके कारण, गलगलकर मर जाती हैं। साफ़, शीतल, गन्धहीन, सफ़ेद्र, पानी-सा हर समय बहा करता है। यहाँ तक कि बहुत बढ़ जानेपर औरत पेशाबके वेगको रोक नहीं सकती, उठते-उठते धोतीमें पेशाब हो जाता है, इसलिये इस रोगवालीकी धोती हर वक्त भीगी रहती है। यह रोग औरतोंको ही होता है।
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