________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
३६२
चिकित्सा-चन्द्रोदय । ... वाली या गर्भ न धारण करनेवाली होती हैं, उन्हें इस घीके खानेसे गर्भ रहता है । यह घृत उत्तम रसायन है।
... प्रदरारि लौह । पहले कुरैयाकी छाल सवा छै सेर लेकर कुचल लो। फिर एक कलईदार वासनमें, बत्तीस सेर पानी और छालको डालकर, मन्दीमन्दी आगसे औटाओ । जब चौथाई या आठ सेर पानी रह जाय, उतारकर, कपड़ेमें छान लो और ठूछको फैंक दो। ... इस छने हुए कार्को फिर कलईदार बासनमें डाल, मन्दाग्निसे पकाओ, जब गाढ़ा होनेपर आ जाय, उसमें नीचे लिखी हुई दवाओंके चूर्ण मिला दो और चट उतार लो।
कामें डालनेकी दवायें--मोचरस, भारङ्गी, बेलगिरी, बराहकान्ता, मोथा, धायके फूल और अतीस-इन सातोंको एक-एक तोले लेकर, कूट-पीसकर कपड़-छन कर लो। इस चूर्णको और एक तोले "अभ्रक भस्म" तथा एक तोले “लोह-भस्म"को उसी ( ऊपरके) गाढ़ा होते हुए कामें मिला दो। ... सेवन-विधि--कुशमूलको सिलपर पीसकर स्वरस या पानी छान लो। एक मात्रा यानी ३ माशे दवाको चाटकर, ऊपरसे कुशमूलका पानी पी लो। इस लोहसे प्रदर-रोग निश्चय ही नाश होता और कोखका दर्द भी जाता रहता है।
प्रदरान्तक लौह । शुद्ध पारा ६ माशे, शुद्ध गन्धक ६ माशे, बङ्ग-भस्म ६माशे, चाँदीकी भस्म ६ माशे, खपरिया ६ माशे, कौड़ीकी भस्म ६ माशे और लोह-भस्म या कान्तिसार तीन तोले- इन सबको खरलमें डालकर, ऊपरसे घीग्वारका रस डाल-डालकर, बारह घण्टों तक घोटो। फिर एक-एक चिरमिटी बराबर गोलियाँ बनाकर, छायामें सुखा
For Private and Personal Use Only