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स्त्री-रोगोंकी चिकित्सा-प्रदर रोग ।
कल्कके लिये जीवनीयगणकी औषधियाँ, चिरौंजी, फालसे, रसौत, मुलेठी, अशोककी छाल, दाख, शतावर और चौलाईकी जड़, इनमेंसे प्रत्येक दवाको सिलपर, जलके साथ-पीसू-फीसकर, दो-दो तोले लुगदी तैयार कर लो और पिसी हुई मिश्री ३२ तोले ले लो। . . कलईदार कढ़ाहीमें कल्क या लुगदियों तथा मिश्री और ऊपरके काढ़े वरको डालकर मन्दाग्निसे पकाओ । जब घी-मात्र रह जाय, उतारकर छान लो और साफ बर्तनमें रख दो। __इस अशोक घृतके पीनेसे सब तरहके प्रदर रोग--श्वेतप्रदर, नीलप्रदर, काला-प्रदर, दुस्तर-प्रदर, कोखका दर्द, कमरका दर्द, योनिका दर्द, सारे शरीरका दर्द, मन्दाग्नि, अरुचि, पाण्डु-रोग, दुबलापन, श्वास और खाँसी-ये सब नाश होते हैं । यह घी आयु बढ़ानेवाला, पुष्टि करनेवाला और रंग निखारनेवाला है। इस घीको स्वयं विष्णु भगवान्ने ईजाद किया था। परीक्षित है।
शीतकल्याण घृत। ___ कमोदिनी, कमल, खस, गेहूँ, लाल शालि-चाँवल, मुगवन, काकोली; कुम्भेर, मुलेठी, खिरेंटी, कंघीकी जड़, ताड़का मस्तक, बिदारीकन्द, शतावर, शालिपर्णी, जीवक, त्रिफला, खीरेके बीज और केलेकी कच्ची फली--इनमेंसे हरेकको दो-दो तोले लेकर, सिलपर जलके साथ पीसपीसकर, कल्क या लुगदी बना लो। ...
गायका दूध ४ सेर, जल २ सेर और गायका घी १ सेर लो। फिर कढ़ाहीमें ऊपरसे कल्क और इन दूध, पानी और घीको मिलाकर, मन्दाग्निसे पकाओ । जब घी-मात्र रह जाय, उतारकर छान लो। इस घीके सेवन करनेसे प्रदर रोग, रक्तगुल्म, रक्तपित्त, हलीमक, बहुत तरहका पित्त कामला, वातरक्त, अरुचि, जीर्णज्वर, पाण्डुरोग, मद और भ्रम ये सब नाश हो जाते हैं । जो स्त्रियाँ अल्प पुष्प
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