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चिकित्सा-चन्द्रोदय ।। रक्तातिसार, बालकोंके आगन्तु दोष, योनिदोष, रजोदोष, श्वेतप्रदर, नीलप्रदर, पीतप्रदर, श्यामप्रदर और लालप्रदर, सब रोग नाश हो जाते हैं । महर्षि आत्रेयने इस चूर्णको कहा है। . मात्रा-डेढ़ माशेसे तीन माशे तक। एक मात्रा खाकर, ऊपरसे चाँवलोंके पानीमें शहद मिलाकर पीना चाहिये । परीक्षित है। ..... , नोट-पाषाण-भेदको हिन्दीमें पाखान-भेद, बँगलामें पाथरचूस, गुजराती
और मरहटीमें पाषाण-भेद कहते हैं । संस्कृतमें पाषाण-भेद, शिला-भेद, अश्मभेदक आदि अनेक नाम हैं । फारसीमें गोशाद कहते हैं। यह योनिरोग, प्रमेह, मूत्रकृच्छ्र, तिल्ली, पथरी, और गुल्म आदिको नष्ट करता है। _____ माइया हिन्दी नाम है । संस्कृतमें इसे मात्रिका और अम्बष्टा कहते हैं। बँगलामें भी मात्रिका कहते हैं। माइयेका पेड़ मशहूर है। इसके पत्तोंका साग बनता है। दवाके काममें इसका सर्वाङ्ग लेते हैं। मात्रा दो माशेकी है।
श्योनाकको हिन्दीमें सोनापाठा, अरलू या टॅटू कहते हैं। बँगलामें शोनापाता या सोनालू, गुजराती में अरलू और मरहटीमें दिंडा या टॅटू कहते हैं । इसकी मात्रा १ माशेकी है । इसका पेड़ बहुत ऊँचा होता है। फलियाँ लम्बी-लम्बी तलवारके समान दो-दो फुटकी होती हैं । फलीके भीतर रूई और दाने निकलते हैं।
अर्जुनवृक्ष हिन्दी नाम है । बंगलामें अर्जुन-गाछ और मरहटीमें अर्जुनवृक्ष कहते हैं । हिन्दीमें केशह और काह भी इसके नाम हैं। संस्कृतमें कुकुम कहते हैं । इसके पेड़ वनमें बहुत ऊँचे होते हैं । इसकी छाल सनद होती है। उसमें दूध निकलता है । मात्रा २ माशेकी है ।
पाढ़ नाम हिन्दी है। इसे हिन्दीमें पाठ भी कहते हैं। संस्कृतमें पाठा. बँगलामें श्राकनादि, मरहटीमें पहाड़मूल और अंगरेज़ीमें पैरोंरूट कहते हैं। इसकी बेलें वनमें होती हैं।
- अशोक घृत । अशोककी छाल १ सेर लेकर ८ सेर अलमें पकाओ, जब पकतेपकते चौथाई पानी रहे उतारकर छान लो । यह काढिी हुआ। ...
इस काढ़ेमें बी १ सेर, चाँवलोंका धोवन १ सेर, बकरीका दृध १ सेर, जीवकका रस १ सेर और "कुकुरभाँगरेका रस १ सेर इनको भी मिला दोन
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