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- चिकित्सा-चन्द्रोदय । -- (५६): कंघीकी जड़को पीस-छानकर, मिश्री और शहदमें मिलाकर, खाने से प्रदर रोग नष्ट हो जाता है। : नोट--कजी, कंगही या ककहिया एक ही दवाके तीन नाम हैं । संस्कृतमें कचीको 'अतिबला' कहते हैं । याद रखो, बला तीन होती हैं:-(१) बला (२) महाबला, और (३) अतिबला । बलाको हिन्दीमें खिरेंटी, बरियारा और बीजवन्द कहते हैं । महाबला या सहदेवीको हिन्दीमें सहदेई कहते हैं और अतिबलाको कङ्घी, कंगही या ककहिया कहते हैं । बला या खिरेंटीकी जड़की छालका चूर्ण दूध और चीनी के साथ खानेसे मूत्रातिसार निश्चय ही चला जाता है । महाबला या सहदेई मूत्रकृच्छ को नाश करती और वायुको नीचे ले जाकर गुदा द्वारा निकाल देती है । कच. या अतिबला दूध-मिश्रीके साथ पी. से प्रमेहको नष्ट कर देती है । ये तीनों प्रयोग अचूक हैं । एक चौथी नागबला और होती है । उसे हिन्दीमें गंगेरन या गुलसकरी कहते हैं। यह मूत्रकृच्छ, क्षत और क्षीणता रोगमें हितकारी है । चारों बलाओं के सम्बन्धमें कहा है:-- ...
बलाचतुष्टयं शीतं मधुरं बलकान्तिकृत् ।
स्निग्धं ग्राहि समीरास पित्तास्र क्षत नाशनम् ॥ - चारों तरहकी बला शीतल, मधुर, बलवर्धक, कान्तिदायक, चिकनी और काबिज या ग्राही हैं । ये वात, रक्त-पित्त, रुधिर-विकार और क्ष्यका नाश करती हैं। - ये चारों बला बड़े ही कामकी चीज़ हैं । इसीसे हमने प्रसंग न होने पर भी, इनके सम्बन्धमें इतना लिखा है। ___ (५७) पवित्र स्थानकी "व्याघ्रनखी” को उत्तर दिशासे लाकर, उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्रमें, कमरमें बाँधनेसे प्रदर रोग नष्ट हो जाता है।
नोट-नख, व्याघ्र नख, व्याघ्रायुध ये नखके संस्कृत नाम हैं। व्याघ्रनख कड़वा, गरम, कसैला और कफवात नाशक है । यह कोढ़, खुजली और घावको दूर करता, एवं शरीरका रङ्ग सुधारता है । सुगन्धित चीज़ है । कहते हैं, यह नदीके जीवोंके नाख न हैं। धूप और तैल आदिमें खुशबूके लिये डाले जाते हैं। नख या नखी पाँच तरहकी होती हैं। कोई बेरके पत्तों-जैसी, कोई कमलके पत्तोंजैसी और कोई घोड़ेके खुरके श्राकारकी, कोई हाथीके कान-जैसी और कोई सूअरके कान-जैसी होती है । इसकी मात्रा २ माशेकी है।
(५८) तूम्बीके फल पीस-छानकर चीनी मिला दो । फिर
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