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स्त्री-रोगोंकी चिकित्सा-प्रदर रोग । शाखात्रोंमें फल लगते हैं । फल गोल-गोल अंजोरके जैसे होते हैं । उनमेंसे दूध निकलता है । कठूमर कफ-पित्त नाशक है। . सूचना-भावप्रकाशमें 'औदुम्बर' शब्द ही लिखा है। इससे यदि काली गूलर या कठूमर न मिले, तो गूलरके फल हो ले लेने चाहिये। ___ (४६) खिरेंटीकी जड़को दूधमें पीसकर और शहद मिलाकर पीनेसे प्रदर रोग शान्त हो जाता है ।
(५० ) खिरेंटीकी जड़को चाँवलोंके धोवनमें पीसकर पीनेसे लाल रंगका प्रदर नाश हो जाता है।
नोट-संस्कृतमें 'बला', हिन्दीमें खिरेटी, बरियारा और बीजवन्द तथा अंगरेजीमें Horn beam leaved कहते हैं। . (५१) बेरोंके चूर्ण में गुड़ मिलाकर, दूधके साथ, पीनेसे प्रदर रोग नाश हो जाता है।
(५२ ) मोचरसको कच्चे दूधमें पीसकर पीनेसे प्रदर रोग आराम हो जाता है।
(५३ ) कपासकी जड़को चाँवलोंके पानीके साथ पीसकर पीनेसे पाण्डु या कफजनित श्वेत प्रदर नाश हो जाता है।
(५४) शास्त्रोक्त औषधियोंसे तैयार हुई मदिरा या शराबके पीते रहनेसे रक्तप्रदर और शुक्ल प्रदर यानी लाल और सफेद प्रदर दोनों नष्ट हो जाते हैं। इसमें शक नहीं।
चक्रदत्तमें लिखा है:__ शमयति मदिरापानं तदुभयमपि रक्तशुक्लभदेन । वृन्दमें ऊपरकी लाइनके अलावा इतना और लिखा है:
विधिविहितं कृतहीणां वरयुवतीनां न सन्देहः ॥ (५५) मुलेठी १ तोले और मिश्री १ तोले-दोनोंको चाँवलोंके घोवनमें पीसकर पीनेसे प्रदर रोग नष्ट हो जाता है।
नोट-बंगसेनमें मिश्री ४ तोले और मुलेठी १६ तोले दोनोंको एकत्र पीसकर चाँवलोंके जलके साथ पीनेसे रक्तप्रदर आराम होना लिखा है।
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