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स्त्री-रोगोंकी चिकित्सा-प्रदर रोग । ३४१ असृग्दरो प्राणहरः प्रदिष्टः स्त्रीणामतस्तं विनिवारयेच्च ।
सब तरहके प्रदर रोग प्राण नाश करते हैं, इसलिये उनको शीघ्र ही दूर करना चाहिये।
___ असाध्य प्रदरके लक्षण । अगर हर समय खून बहता हो, प्यास, दाह और बुखार हो, शरीर बहुत कमजोर हो गया हो, बहुत-सा खून नष्ट हो गया हो, शरीरका रङ्ग पिलाई लिये सफ़ेद हो गया हो, तो चतुर वैद्यको ऐसे लक्षणोंवाली रोगिणीका इलाज हाथमें न लेना चाहिये। क्योंकि इस दशामें पहुँचकर रोगिणीका आराम होना असम्भव है। ये सब असाध्य रोगके लक्षण हैं।
नोट--सुचतुर वैद्य असाध्य रोगीका इलाज करके वृथा अपनी बदनामी नहीं कराते । हाँ, जिन्हें साध्यासाध्यकी पहचान नहीं, वे ही ऐसे असाध्य रोगियोंकी चिकित्सा करने लगते हैं। यही बात हम त्रिदोषज प्रदरके लक्षणोंके नीचे, जो नोट लिखा है उसमें, चरकसे लिख आये हैं । वैद्यको सभी बातें याद रखनी चाहिये । इलाज हाथमें लेकर पुस्तक देखना भारी नादानी है। __ इलाज बन्द करनेको शुद्ध श्रावके लक्षण । . "चरक"में लिखा है:--
मासानिष्पिच्छदाहार्ति पञ्चरात्रानुबन्धि च ।
नैवाति बहुलात्यल्पमा शुद्धमदिशेत् ॥ यदि स्त्री महीने-की-महीने ऋतुमती हो और उसकी योनिसे पाँच रातसे जियादा खून न गिरे और उस ऋतुका खून दाह, पीड़ा और चिकिनाईसे रहित तथा बहुत ज़ियादा या बहुत कम न हो, तो कहते हैं कि शुद्ध ऋतु हुआ। ___और भी लिखा है,-ऋतुका खून चिरमिटीके रङ्गका, लाल कमलके रङ्गका अथवा महावर या बीरबहुट्टीके रङ्गका हो, तो समझना चाहिये कि विशुद्ध ऋतु हुई।
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