________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
मूषक-विष-चिकित्सा।
२८१
गुणकारी है । नहाकर ऐसा कोई लेप, मौसमके अनुसार, अवश्य करना चाहिये।
(१०) जहाँ तक हो, मकानको खूब साफ रखो। जरा-सा भी कूड़ा-करकट मत रहने दो । इसके सिवा, हो सके तो नित्य, नहीं तो, चौथे-पाँचवें दिन साफ पानी या पानीमें कोई विषनाशक दवा मिलाकर उसीसे घर धुलवा देना बहुत ही अच्छा है । इस तरह जमीन वग़ैर में लगा हुआ चूहे प्रभृतिका विष धुलकर बह जायगा।
(११) दूसरे आदमीके मैले या साफ़ कैसे भी कपड़े हरगिज़ मत पहनो। पराये तौलिये या अँगोछेसे शरीर मत पोंछो। कौन जाने किसके कपड़ोंमें कौनसा विष हो ? हमारे यहाँ आजकल एक वातरक्त या पारेके दोषका रोगी कभी-कभी आता है। सारे शहरके चिकित्सक उसका इलाज कर चुके, पर वह आराम नहीं होता। वह हमसे गज़-भर दूर बैठता है, पर उसके शरीरको छूकर जो हवा आती
और हमारे शरीरमें लगती है, फौरन खुजली-सी चला देती है । उसके जाते ही खुजली बन्द हो जाती है । अगर कोई शख्स ऐसे आदमीके कपड़े पहने या उसके वस्त्रसे शरीर रगड़े, तो उसे वही रोग हुए बिना न रहे । इसीसे कहते हैं, किसीके साफ़ या मैले कैसे भी कपड़े न पहनो और न छुओ।
आजकलके विद्वानोंकी अनुभूत बातें । __ अहमदाबाद के "कल्पतरु"में चूहेके विषपर एक उपयोगी लेख किसी सज्जनने परोपकारार्थ छपवाया था। उसमें लिखा है:--"चूहा मनुष्यको जिस युक्तिसे काटता है, वह भी सचमुच ही आश्चर्यकारी बात है । जिस समय मनुष्य नींदमें ग़र्क होता है, चूहा अपने बिल या छप्परमेंसे नीचे उतरता है । बहुधा सोते हुए आदमीकी किसी उँगलीको ही वह पसन्द करता है । पहले वह अपनी पसन्दकी जगहपर फूंक मारता है । इँ क मारनेसे शायद वह स्थान बहरा या सूना हो जाता
For Private and Personal Use Only