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चिकित्सा-चन्द्रोदय । हो । प्रायः जहरीले चूहेकी लारमें चमड़ेके स्पर्श-ज्ञानको नाश करनेकी शक्ति रहती है। चूहेकी कूँ कमें ऐसी ही कोई विचित्र शक्ति होती है, तभी तो वह जब तक काटता और खून निकालता है, मनुष्यको कुछ खबर नहीं होती, वह सोता रहता है । पूँ क मारनेके बाद, चूहा जीभसे उस भागको चाटता और फिर तूं घता है। सोते आदमीकी उँगली अथवा अन्य किसी भागपर (१) फू कनेकी, (२) लार लगानेकी, और (३) चाटनेकी--इन तीन क्रियाओंके करनेसे उसे यह मालूम हो जाता है, कि मेरी शिकार सोती है--जागती नहीं । अपनी क्रिया सफल हुई समझकर, वह फिर काटता है। ___ "उसका दंश कुछ गहरा नहीं होता; तो भी इतना तो होता है, जितनेमें उसके दंशका विष चमड़ेके नीचे खूनमें मिल जावे । कुछ गहराई होती है, तभी तो खून भी निकल आता है । चूहेके काटकर भाग जानेके बाद मनुष्य जागता है । जागते ही उसे किसी प्राणीके काट जानेका भय होता है, पर वह इस बातका निश्चय नहीं कर सकता, कि किसने काटा है--साँपने, चूहेने या और किसी प्राणीने । साँपके काटनेपर तो तुरन्त मालूम हो जाता है, क्योंकि दंश-स्थानमें जोरसे झनझनाहट या पीड़ा होती है और वहाँ दाढ़ोंके चिह्न दीखते हैं; पर चूहेका विष तो उसके दशके समान युक्ति-युक्त व गुप्त होता है । चूहेके दंशकी पीड़ा अधिक न होनेके कारण, मनुष्य उसकी उपेक्षा करता है । मिर्च और खटाई खाता रहता है । थोड़े ही दिनों बाद, समय और कारण मिलनेसे, चूहेका विष प्रत्यक्ष होने लगता है । दो सप्ताह तक . विषका पता नहीं लगता । किसी-किसी चूहेका विष जल्दी ही प्रकट होने लगता है । दंशका भाग या काटी हुई जगह सूज जाती है । चूहेके विषका भाग बहुधा लाल होता है, सूजनमें पीड़ा भी बहुत होती है, शरीरमें दाह या जलन और दिलमें घबराहट होती है। चूहेके विषके ये तीक्ष्ण लक्षण महीने दो महीनेमें शान्त हो जाते हैं; पर
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