________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
चिकित्सा-चन्द्रोदय। ऐसी हालतमें विष ही विषको नष्ट कर सकता है । दुनियामें मशहूर भी है "विषस्य विषमौषधम्" यानी विषकी दवा विष है। इसीसे महर्षि वाग्भट्टने लिखा भी है:___ "अन्तमें, अगर बिच्छूका विष बहुत ही बढ़ा हुआ हो, तो उसके डक मारे स्थानपर विषका लेप करना चाहिये और उच्चिटिङ्ग के विषमें भी यही क्रिया करनेका क़ायदा है।" ।
जिस तरह सभी तरहके साँपोंके सात वेग होते हैं, उसी तरह महाविषवाले या मध्यम विषवाले बिच्छुओंके विषके भी सात वेग होते हैं । जिस तरह साँपोंके विषके पाँचवें वेगके बाद और सातवें वेगके पहले प्रतिविष सेवन करानेका नियम है; उसी तरह बिच्छूके विषमें भी प्रतिविष सेवन करानेका क़ायदा है । अगर मंत्र-तंत्र और उत्तमोत्तम विषनाशक औषधियोंसे लाभ न हो, हालत बिगड़ती ही जावे, तो प्रतिविष लगाना और खिलाना चाहिये । जिस तरह ज्वररोगकी अन्तिम अवस्थामें, जब बहुत ही कम आशा रह जाती है, रोगीको साँपोंसे कटाते हैं अथवा चन्द्रोदय आदि उग्र रस देते हैं; उसी तरह साँप और बिच्छू प्रभृति उग्र विषवाले जन्तुओंके काटनेपर, अन्तिम अवस्थामें, विष खिलाते और विष ही लगाते हैं। ____ नोट-जब एक विष दूसरे विषके प्रतिकूल या विरुद्ध गुणवाला होता है, तब उसे उसका "प्रतिविष" कहते हैं । जैसे, स्थावर विषका प्रतिविष जंगम विष और जंगम विषका प्रतिविष स्थावर विष है।
(७) ऊपरकी तरकीबोंसे वही इलाज कर सकता है, जिसे इन सब बातोंका ज्ञान हो, सब तरहसे विषोंके गुणावगुण, पहचान
और उनके दर्पनाशक उपाय या उतार आदि मालूम हों; पर जिन्हें इतनी बातें मालूम न हों, उन्हें पहले सीधी-सादी चिकित्सा करनी चाहिये; यानी सबसे पहले, अगर बन्ध बाँधने-योग्य स्थान हो, तो बन्ध बाँध देना चाहिये । इसके बाद डङ्क मारी हुई जगहको
For Private and Personal Use Only