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बिच्छूकी चिकित्सामें याद रखने योग्य बातें। २५७ . (२) विषको मुँह अथवा सींगी प्रभृतिसे चूसो । .. (३) अगर दागनेका मौक़ा हो, तो डसे हुए स्थानको चीरकर
या वहाँ का मांस निकालकर दाग दो अथवा कोई उत्तम विष-नाशक लेप लगा दो।
(४) गरम पानी या किसी काढ़ेसे डसी हुई जगहको धोत्रो।
(५) जरूरत हो, तो फस्द खोलकर खून निकाल दो, क्योंकि खूनके साथ विष निकल जाता है।
(६) वाग्भट्टमें लिखा है, अगर बिच्छूका काटा हुआ मध्यनु बेहोश हो, संज्ञाहीन हो, जल्दी-जल्दी श्वास लेता हो, बकवाद करता हो और घोर पीड़ा हो रही हो, तो नीचे लिखे उपाय करोः__ (क) काटे हुए स्थानपर कोई अच्छा लेप करो। जैसे; हाड़, हल्दी, पीपर, मँजीठ, अतीस, कालीमिर्च और तूम्बीका वृन्त-इन सबको वार्ताकू या बैंगनके स्वरसमें पीसकर लेप करो। . (ख) उग्र विषवाले बिच्छूके काटे हुएको दही और घी पिलाओ।
(ग) शिरा बींधो यानी फस्द खोलो।
(घ) वमन कराओ; क्योंकि विष-चिकित्सामें वमन कराना सबसे उत्तम उपाय है।
(ङ) नेत्रों में विष-नाशक अञ्जन आँजो । (च) नाकमें विष-नाशक नस्य हुँ घाओ ।
(छ) गरम, चिकना, खट्टा और मीठा वात-नाशक भोजन रोगीको दो; क्योंकि ऐसा भोजन हितकारी है।
(ज) अगर बिच्छूका विष बहुत ही भयंकर हो, चढ़ता ही चला जावे, अच्छे-अच्छे उपायोंसे भी न रुके, तो शेषमें डक मारी हुई जगहपर विषका लेप करो।
खुलासा यह है, कि अगर विषका जोर बढ़ता ही जावे-रोगीकी हालत खराब होती जावे, तो विषका लेप करना चाहिये, क्योंकि
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