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सर्प-विषकी सामान्य चिकित्सा ।
२३३ (१६) ल्हिसौड़ा, कायफल, बिजौरा नीबू , सफ़ेद कोयल, सफेद पुनर्नवा और चौलाईकी जड़--इन सबको एकत्र पीस लो। इस दवाके सेवन करनेसे दीकर और राजिल जातिके साँपोंका विष नष्ट हो जाता है । यह बड़ी उत्तम दवा है।
(२०) सम्हालूकी जड़के स्वरसमें निर्गुण्डीकी भावना देकर पीनेसे सर्प-विष उतर जाता है।
(२१) सैंधानोन, कालीमिर्च और नीमके बीज--इन तीनोंको बराबर-बराबर लेकर, एकत्र पीसकर, फिर शहद और घीमें मिलाकर, सेवन करनेसे स्थावर और जंगम दोनों तरह के विष नष्ट हो जाते हैं।
( २२ ) चार तोले कालीमिर्च और एक तोले चाँगेरीका रसइन दोनोंको एकत्र करके और घीमें मिलाकर पीने और लेप करनेसे साँपका उग्र विष भी शान्त हो जाता है ।
नोट-चाँगेरीको हिन्दीमें चूका, बँगलामें चूकापालङ, मरहठीमें पांवटचुका और फ़ारसीमें तुरशक कहते हैं। यह बड़ा खट्टा स्वादिष्ट शाक है। इसके प्रतिनिधि जरश्क और अनार हैं।
(२३) बंगसेनमें लिखा है, मनुष्यका मूत्र पीनेसे घोर सर्प-विष नष्ट हो जाता है।
(२४) परवलकी जड़की नस्य देनेसे कालरूपी सर्पका डसा. हुआ भी बच जाता है।
नोट-इस नुसख को वृन्द और बङ्गसेन दोनोंने लिखा है।
(२५) पिण्डी तगरको, पुष्य नक्षत्रमें, उखाड़कर, नेत्रोंमें लगानेसें साँपका काटा हुआ आदमी मरकर भी बच जाता है। इसमें आश्चर्यकी कोई बात नहीं है।
नोट--तगर दो तरहकी होती है-(१) तगर, और (२) पिण्डी तगर ।। पिण्डी तगरको नन्दी तगर भी कहते हैं। दोनों तगर गुणमें समान हैं। पिण्डी.
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