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चिकित्सा-चन्द्रोदय । नील अपराजिता कहते हैं। मरहठीमें गोकर्ण और गुजरातीमें धाली गरणी कहते हैं । इसके सम्बन्धमें निघण्टुमें लिखा है।
आमं पित्तरुजं चैव शोथं जन्तून् वणं कफम् ।
ग्रहपीडां शीर्षरोगं विषं सर्पस्य नाशयेत् ॥ सनद कोयल--प्राम, पित्तरोग, सूजन, कृमि, घाव, कफ, ग्रहपीड़ा, मस्तक-रोग और साँपके विषको नाश करती है। . .
(१६) सिरसके पत्तोंके रसमें सफेद मिर्चीको पीसकर मिला दो और मसलकर सुखा लो। इस तरह सात दिन में सात बार करो। जब यह काम कर चुको; तब उसे रख दो । साँपके काटे हुए आदमीको इस दवाके पिलाने, इसकी नस्य देने और इसीको आँखोंमें आँजनेसे निश्चय ही बड़ा उपकार होता है । परीक्षित है ।
नोट-केवल सिरसके पत्तोंको पीसकर, साँपके काटे स्थानपर लेप करनेसे साँपका ज़हर उतर जाता है। इसको हिन्दी में सिरस, बँगलामें शिरीष गाछ, मरहठीमें शिरसी और गुजरातीमें सरसडियो और फारसीमें दरख्ते जकरिया कहते हैं । निघण्टुमें लिखा है:--
शिरीषो मधुरोऽनुष्णस्तिक्तश्च तुवरो लघुः । . दोषशोथविसर्पनः कासव्रणविषापहः ॥ सिरस मधुर, गरम नहीं, कड़वा, कसैला और हल्का है। यह दोष, सूजन, विसर्प, खाँसी, घाव और ज़हरको नाश करता है।
(१७) बॉझ-ककोड़ेकी जड़को बकरीके मूत्रकी भावना दो। फिर इसे काँजीमें पीसकर, साँपके काटे हुएको इसकी नस्य दो। इस नस्यसे साँपका विष दूर हो जाता है।
नोट-बाँझ-ककोड़ेकी गाँठ पानीमें घिसकर पिलाने और काटे हुए स्थानपर लगानेसे साँप, बिच्छू, चूहा और बिल्लीका ज़हर उतर जाता है । परीक्षित है।
(१८) घरका धूआँ, हल्दी, दारुहल्दी और चौलाईकी जड़-इन चारोंको एकत्र पीसकर, दही और घीमें मिलाकर, पीनेसे वासुकि साँपका काटा हुआ भी आराम हो जाता है ।
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