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सर्प-विष-चिकित्सा--विषनाशक अगद । २२३: मांस निकलता है, प्यास, मूर्छा, भ्रम, दाह और ज्वर--ये लक्षण जिस क्षत या घावमें होते हैं, उसे दिग्धविद्ध (विष-लिपे शस्त्रके बिंधनेसे हुआ घाव ) घाव कहते हैं। - जिन घावोंमें ऊपरके लक्षण हों, विषयुक्त डंक रह गया हो, मकड़ी लड़के-से घाव हों, दिग्धविद्ध घाव हों, विषयुक्त घाव हों और जिन घावोंका मांस सड़ गया हो, पहले उनका सड़ा-गला मांस दूर कर दो; यानी नश्तरसे छीलकर फेंक दो । फिर जौंक लगाकर खून निकाल दो;
और वमन-विरेचनसे दोष दूर कर दो। ___ फिर दूधवाले वृक्ष--गूलर, पीपर, पाखर आदिके काढ़ेसे घावपर तरड़े दो और सौ बारके धुले हुए घीमें विष-नाशक शीतल द्रव्य मिलाकर, उसे कपड़ेपर लगाकर, मल्हमकी तरह, घावपर रख दो। अगर किसी दुष्ट जन्तुके नख या कण्टक आदिसे कोई घाव हुआ हो, तो ऊपर लिखे हुए उपाय करो अथवा पित्तज विषमें लिखे उपाय करो।
विष-नाशक अगद।
ताक्ष्यों अगद । पुण्डेरिया, देवदारु, नागरमोथा, भूरिछरीला, कुटकी, थुनेर, सुगन्ध रोहिष तृण, गूगल, नागकेशरका वृक्ष, तालीसपत्र, सज्जी, केवटी मोथा, इलायची, सफेद सम्हालू, शैलज गन्धद्रव्य, कूट, तगर, फूलप्रियंगू, लोध, रसौत, पीला गेरू, चन्दन और सैंधानोन-इन सब दवाओंको महीन कूट-पीस और छानकर शहदमें मिलाकर, गायके सींगमें भरकर, ऊपरसे गायके सींगका ढक्कन देकर,
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